पुराणों से जाने भारत के सबसे बड़े दानवीर कौन है

Bharat Ke Sabse Bade 10 Daanveer Koun Hai . 

दान देना धर्म का ही एक मार्ग बताया गया है | दान कभी स्वार्थी नही दे सकता , दान वही दे सकता है जिसके मन में परोपकार की भावना हो | दान वही दे सकता है जिससे दुसरो का दुःख देखा नही जाता | कुछ लोगो दान करते है सागर रूपी पूंजी में से कुछ बुँदे |पर कुछ ऐसे है जिन्होंने अपने शरीर , अपने जीवन तक का ही दान धर्म के लिए कर दिया | आइये आज इस पोस्ट के माध्यम से सनातन हिन्दू धर्म में उन महान व्यक्तियों के बारे में जाने जिन्हें महादानी बताया गया है |

किन चीजो का दान करने से मिलता है सबसे ज्यादा पूण्य

Purano se jaane daanveer

भारत के महान दानवीर और उनके महा दान


वीर बर्बरीक :


महाभारत युद्ध में सबसे बड़े धनुर्धर एक 14 साल का बालक बर्बरीक था | उसकी शक्तियों के सामने कर्ण , अर्जुन और भीष्म पितामह भी कुछ नही थे | कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने पुरे परवान पर था | बर्बरीक ने युद्ध में भाग लेने और कमजोर पक्ष का साथ देने का वचन अपनी माँ मोर्वी को दे दिया था | कृष्ण भगवान यह बाते अच्छे से जानते थे यदि बर्बरीक ने युद्ध में कमजोर कौरवो का साथ दे दिया था पांडवो की हार निश्चित है | उन्होंने धर्म को जीत दिलाने के लिए ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से उसका शीश का दान ही मांग लिया | बर्बरीक ने अपने शीश का दान दिया और महा दानी बन गये | कृष्ण ने उन्हें कलियुग में घर घर में उन्ही के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया | आज बर्बरीक जी खाटू श्याम जी श्याम बाबा के नाम से राजस्थान के खाटू के मंदिर में विराजित है और लाखो भक्त उनके दर्शन करने आते है |

राजा बलि :


राजा बलि दैत्यों के गुरु शंकराचार्य के सानिध्य में एक बहुत बड़ा हवन कर रहे थे | यह हवन असीम शक्तियों की प्राप्ति के लिए था | सभी देवता इस हवन से चिंतित हो उठे | तब भगवान विष्णु के अवतार वामन रूपी छोटे कद के ब्राह्मण बलि के राज्य में पहुंचे |

राजा बलि


उन्होंने बलि से तीन पग भूमि का दान मांग लिया | बलि को उनके गुरु ने बहुत रोका पर बलि ने दान दे ही दिया | वामन भगवान ने विराट रूप धारण किया और दो ही पग में दो लोक ले लिए | राजा बलि के पास अब कुछ नही बचा तो उन्होंने अपने शीश पर ही तीसरा पग रखवा लिया | विष्णु भगवान उनके इस दान से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें पाताल में रहने का निर्देश दिया |

सूर्य पुत्र कर्ण


महाभारत काल में एक और महान दानी हुआ जिसका नाम कर्ण था | इन्हे दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता था | इन्हे दर से कोई खाली हाथ नही गया | यह कुंती और भगवान सूर्य के पुत्र थे | उनके पिता ने उन्हें जन्म से ही एक सूर्य कवच प्रदान किया था जिस पर अस्त्र शस्त्र से वार निष्फल हो जाते थे | कर्ण की मृत्यु के लिए यह कवच उनके शरीर से उतारना जरुरी हो गया था | भिक्षुक के भेष में देवराज इन्द्र एक बार कर्ण के दरबार आये और भिक्षा मांगने लगे |कर्ण ने उनसे पूछा की उन्हें क्या चाहिए | तब भिक्षुक ने उनके सूर्य कवच कुण्डल दान में मांग लिए | कर्ण अच्छे से जानते थे की वे इनका दान करके कमजोर हो जायेंगे फिर भी उन्होंने यह ख़ुशी ख़ुशी दान कर दिया |

राजा हरिश्चन्द्र

राजा हरिश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे जो सत्यव्रत के पुत्र थे। वह सत्यनिष्ठा और महादानी थे | अपने जीवन में उन्होंने अनेको कष्टों का सामना किया है | राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के मार्ग पर चलने के लिये अपनी पत्नी और पुत्र के साथ खुद को बेच दिया था। अपने दानी स्वभाव के कारण विश्वामित्र जी को अपने सम्पूर्ण राज्य को दान कर दिया था |

राजा शिवी

राजा शिवी के दरबार से कभी कोई खाली हाथ नही गया | एक बार एक कबूतर और उसके पीछे चील उनके दरबार में आये | कबूतर ने राजा शिवी से रक्षा की विनती की | चील ने भी कहा की यह कबूतर उसका शिकार है और वो इसे खायेगा |

raja shivi koun hai


राजा शिवी ने चील से कहा की यह कबूतर मेरा शरणागत है और मैं इसकी रक्षा का वचन दे चूका हूँ | अत: इसके वजन के बराबर तुम मेरे शरीर का मांस खा सकते हो | चील प्रसन्न हो गया और पुरे दरबार में राजा ने अपना मांस काट कर चील का पेट भर दिया | वाह महादानी शिवी |

महर्षि दधीचि


देवताओ और दैत्यों के युद्ध देवराज इन्द्र को विजय प्राप्ति के लिए महाशक्तिशाली अस्त्रों की जरुरत थे | तब उन्हें पता चला की महर्षि दधीचि की हड्डियों से यदि अस्त्र बनाये जाये तो असुर जीत नही पाएंगे |

maharashi dadichi


वे इसी कामना से महर्षि दधीचि के पास गये और धर्म के लिए उनके शरीर की हड्डियों का दान मांग लिया |महर्षि दधीचि की अस्थियो से वज्र बनाया गया जिसे इंद्र ने धारण करके असुरो का विनाश कर दिया | धन्य है ऐसे महादानी महर्षि दधीचि |

एकलव्य


इतिहास में सबसे बड़े दानवीर में गुरु के परम शिष्य एकलव्य का भी नाम आता है .   द्रोणाचार्य नहीं चाहते थे कि कोई अर्जुन से बड़ा कोई अन्य धनुर्धारी बने | एक बार जंगल में उन्होंने एकलव्य की धनुर्विद्या देखी | उन्होंने पूछ लिया की तुम्हारे गुरु कौन है | तब वे एकलव्य ने बताया की वे ही उनके गुरु है |

Eklavya Aur Dron


द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनका मुख्य अंगूठा ही गुरु दक्षिणा में मांग लिया | एकलव्य ने बिना समय लगाये गुरु को अपना अंगूठा काट कर दे दिया | यह दान गुरु शिष्य के इतिहास में सबसे बड़ा दान माना गया है |

Conclusion (निष्कर्ष ) 

तो दोस्तों इस आर्टिकल में आपने जाना पुराणों से भारत के सबसे बड़े दानवीर जिन्होंने धर्म या रिश्तो के लिए अपना सर्वस्व दान कर दिया . इनका दान इतना बड़ा था की युगों युगों तक इनका नाम दान के कारण अमर हो गया है . 

आशा करता हूँ यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा . 


पढ़े : - दान देते समय ध्यान रखने चाहिए जरुरी नियम

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