मंदिरों में चरणामृत का महत्व

Importance of Charnamrit in Temples . चरणामृत दो शब्दो चरण +अमृत से मिलकर बना है , इसका सीधा सा अर्थ है ईश्वर के चरणों को स्पर्श करने वाला जल जो अब उनके पैरो के स्पर्श से अमृत बन गया है |

हम मंदिरों में यही चरणामृत प्राप्त करते है जो मंदिर में देवी देवताओ के चरणों को धुला कर भक्तो को तुलसी के पत्ते सहित दिया जाता है |

charnamrit mahtav


शास्त्रों में श्लोक आता है की

“ अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।

विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।

इस श्लोक से चरणामृत की महानता का ज्ञान होता है की यह वो अमृत है जो मनुष्य के अकाल मृत्यु को हर लेता है , सभी व्याधियोंका का विनाश कर देता है , और भगवान विष्णु के चरणों को धोने वाले जल को पीने से मोक्ष की प्राप्ति होती है |

किस तरह शुरू हुई श्री हरि के चरणामृत की परम्परा :

भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर एक बार राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए और उन्होंने दान रूप में तीन पग जमीन मांग ली | पहले पग में पाताल लोक , दुसरे में ऊपर का लोक पर जब तीसरा पैर ब्रह्म लोक पर रखे तो ब्रह्मा जी ने अपने में से जल लेकर उनके पैर धोये और पुनः जल कमंडल में रख लिया | और यही जल फिर गंगा बनकर मनुष्यों के पाप धोती है |

तो यह ईश्वर के निज चरणों की शक्ति है की उन्हें जल स्पर्श करने से गंगा जैसा पवित्र जल बन जाता है |


charnamrit ka mahtav

राम के श्री चरणों के चरणामृत से भव सागर पार हुए केवट के बारे में  गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बहूत ही सुन्दर बात कही है की

पद पखारि जलुपान करि आपु सहित परिवार।

पितर पारु प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार।।

रामायण में एक प्रसंग आता है जिसमे केवट श्री राम जी को नदी पार कराते है, इसके पूर्व वो श्री रामजी के चरणों को धोकर चरणामृत लेते है जो उन्हें और उनके पूर्वजो को भव सागर पार करा देते है |

चरणामृत का धार्मिक के साथ  चिकित्सकीय महत्व :

चरणामृत हमेशा तांबे के पात्र से दिया जाता है जिसमे पड़ा जल इतना शुद्ध हो जाता है की अनेको बीमारियों को हर सकता है | इसके साथ मिली तुलसी के पत्ते इसके गुणवता को और बढ़ा देती है | ऐसा चरणामृत लेने से मेधा,बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। 

चरणामृत में ध्यान रखने योग्य बाते :

⭐ चरणामृत हमेशा दांये हाथ से ले और उस समय आपका बांया हाथ दांये हाथ के निचे रहे |

⭐ चरणामृत मूंह में लेने से पहले उसे सिर से लगाये फिर मूंह में ले और फिर हाथो को सिर पर ना लगाये |

⭐ चरणामृत के जल में आये तुलसी जी के पत्तो को मुंह में चबाये नही , बल्कि सीधे निगल जाए .

चरणामृत हाथो में ग्रहण करते समय ये मंत्र बोले :- 

त्वगंदसंभवेन त्वा पूजयामि यथा हरिम , तथा नाशय विध्न्म में ततो यान्ति परागतिम ||

⭐ चरणामृत  मुंह से ग्रहण करते समय  निम्न मंत्र बोलना चाहिए .

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। 

विष्णुपादोदक पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।। 

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सारांश 

  1. तो दोस्तों आपने जाना की चरणामृत का हमारे हिन्दू धर्म में क्या महत्व है और इससे जुड़े मुख्य नियम और जरुरी बाते क्या है  . आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी . 

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