कांवड़ यात्रा का क्या महत्व है और जाने इसे जुड़े जरुरी नियम

आपने शिवजी के परम प्रिय मास श्रावण में भक्तो को अपने कंधे पर कांवड़ में पवित्र  जल लाते देखा होगा | यह पैदल कोसो चल कर पवित्र जल लाते है और फिर इस जल से शिवजी का अभिषेक करते है |

kaanvad yatra kya hai


कांवड़ लाने की परम्परा आज की नही बल्कि बहुत प्राचीन समय से है . लोगो तीर्थ स्थलों से पवित्र जल कांवड़ में भर कर लाते है और अपने मंदिरों में इससे अभिषेक करते है . 

कैसे हुई कांवड़ परंपरा की शुरुआत :

विष्णु अवतार भगवान परशुरामजी ने अपनी अनन्य शिव भक्ति में कांवड़ परंपरा की शुरुआत की | वे गंगा का जल अपनी कांवड़ में भर के रोज शिव अभिषेक किया करते थे |

रामायण में भी  लंकापति रावण और श्री राम दोनों को परम शिवभक्त बताया गया है और दोनों ने कांवड़िया बनकर शिव अभिषेक किया था | कहते है इस यात्रा से मनुष्य एक तप से होकर गुजरता है जिससे आत्मविश्वास और मन में संतोष मिलता है | यात्रा पूर्ण करने पर व्यक्तित्व में निखार आता है | कांवड़ यात्रा पूर्ण करने से मनुष्य में संकल्प शक्ति बढती है |

जानें क्या है कांवड़ का अर्थ?

कांवड़ को कांवर भी पुकारते है जिसका अर्थ है कंधे। इस कांवड़ में कंधे का विशेष भूमिका है , इसी कंधे के सहारे पवित्र जल की कांवड़ लाई जाती है | कंधे कांवड़ में संतुलन का कार्य करते है | शिव भक्त अपने कंधे पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए ईष्ट शिवलिंगों तक पहुंचते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के लिए पूरे विश्व में अलग पहचान रखने वाले भारतवर्ष में कांवड़ यात्रा के दौरान भोले के भक्तों में अद्भुत आस्था, उत्साह और अगाध भक्ति के दर्शन होते हैं । कांवडिय़ों के सैलाब में रंग-बिरंगी कांवड़े देखते ही बनती हैं।

kaanvad yatra ka mahtav


कांवड़ यात्रा का महत्व 

यह एक शारीरिक श्रम की यात्रा है जो आपको अंधेरो में चलना सिखाती है . कांवड़ यात्रा आप कितने किलोमीटर की कर रहे है और इसमे कितना आप चल रहे है . इस बात से आपकी भक्ति की पराकाष्टा का पता चलता है . 

कई लोग कई दिनों तक कांवड़ यात्रा करते है तो कई लोग रविवार को रात में कांवड़ यात्रा शुरू करते है और अगले दिन सोमवार को अपने इच्छित महादेव के मंदिर में आकर इस कांवड़ में लाये गये जल से शिवलिंग का अभिषेक करते है . 

बहुत से भक्त बड़े बड़े तीर्थ स्थलों जैसे हरिद्वार , ओम्कारेश्वर , ऋषिकेश , काशी , प्रयागराज आदि से कावड़ यात्रा शुरू करते है 

कांवडिय़ों का रूप और पोशाक :

भोले बाबा को मनाने के लिए कांवडिये रंग बिरंगी पोशाक पहनते है पर सबसे ज्यादा पहनी जाती है भगवा पोशाक | भगवा रंग हिन्दुत्व का प्रतीक है | इस यात्रा के दौरान कोई भी नशा नही करे और सादा भोजन और उच्च विचार रखे | जहा तक हो सके मन में भोलेनाथ की जयकार ही लगती रहनी चाहिए | अपनी कांवड़ को जमीन पर न रखे न ही इसका पानी गिरने दे |

देवघर की प्रसिद्ध कांवड़ यात्रा 

यदि बात करे तो इस शिवलिंग की जिसके लिए हजारो कावडिये कांवड़ यात्रा में शामिल होकर अभिषेक करते है तो उसमे सबसे पहले नाम आएगा देवघर मंदिर का .

हरिद्वार की कांवड़ यात्रा 

उत्तराखंड की पावन धरती पर बसा हरिद्वार माँ गंगा के तट पर बसा हुआ है. यहा गंगा जी का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है जहाँ दुनिया भर से भक्त माँ गंगा में स्नान करने और गंगा आरती देखने आते है . यह साथ ही सावन मास में कांवड़ यात्रा का मुख्य केंद्र बन जाता है जब भारत के कोने कोने से लोग यहा आकर गंगा जी का जल अपनी कांवड़ में भरते है और शिव जी का अभिषेक करने के लिए लेकर जाते है . 

सावन महीने में यहा अपार भीड़ होती है और हर जगह कांवडीये दिखाई देते है .  

 

भोलेनाथ के लिय जयकारे :

बोल बम ताड़क बम हर हर महादेव

जय गंगेश्वर जय नागेश्वर 


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