शिर्डी में साई और बैजाबाई का क्या रिश्ता था ?  

Relation Between Sai baba And Bayajji Bai 

हम सभी जानते है कि साई बाबा जब 16 साल की उम्र में शिर्डी गाँव में आये थे तब वे एक नीम के पेड़ के निचे ध्यान मगन हो गये थे . 

सबसे पहले उन्हें शिरडी में उस पेड़ के निचे जिस महिला ने देखा उसका नाम बैजाबाई था . वे साई बाबा के पुत्र रूपी रूप से इतनी मोहित हो गयी कि उन्हें अपना पुत्र मानने लगी . 

साई को इस तरह घंटो धुप छाँव और बरसात में नीम पेड़ के निचे तप में देखना उन्हें कष्ट देता था . 

वे रोज अपने घर में खाना बनाकर घने जंगलो से होकर साई बाबा तक पहुँचती और नित्य साई बाबा के लिए भोजन बना कर लाती थी .  

शिर्डी में सबसे पहला प्यार और दुलार उन्हें बैजा बाई से ही मिला था , वो भी बिना किसी शर्त के . निस्वार्थ . 

साई जब अपनी आँखे खोलते तो वे अपने सामने ममतामई आँखों से निहारते बैजाबाई को देखा करते थे . 

साई को अपना पुत्र पुकारती थी और साई भी उन्हें अपनी माँ कहते थे . 

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sai baba and baijaa bai


साई बाबा को इस तरह बैजाबाई सालो तक भोजन कराती रही . 

कुछ साल बाद बाबा ने जंगल छोड़कर शिर्डी की ही एक टूटी फूटी  मस्जिद में शरण ले ली जिसे द्वारकामाई कहा जाता है . 

अब वे घर घर भिक्षा मांगकर अपना भोजन पाते थे . 

बैजा बाई साई से कई बार इसके लिए लड़ाई करती थी उनके होते हुए साई को भिक्षा मांगने की क्या जरुरत है . 

पर साई हर बार मुस्कान के साथ यही कहते कि एक फकीर का कर्म तो उन्हें करना ही है . 

कुछ सालो में बैजाबाई को भी एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई . साई बाबा ने इस अपने छोटे भाई का नाम तात्या रखा . 

बैजाबाई के लिए तब भी साई और तात्या दोनों एक समान पुत्र थे . 

sai or baijja bai


शिर्डी में जब भी कोई साई पर अंगुली उठाता तो बैजाबाई एक ढाल बनकर साई की रक्षा के लिए खड़ी हो जाती थी 

ऐसा कहते है कि साई ने कई बार तात्या पर आये संकटो को दूर किया था . 

ऐसी मान्यता है कि तात्या पे आई मौत को साई ने अपने ऊपर ले लिया था और दशहरे के दिन समाधी लेकर अपनी देह को त्याग दिया था . 


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