जलझूलनी एकादशी व्रत महत्व , कथा और पूजन विधि

Jal Jhulani Ekadashi Importance :जलझूलनी एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को आती है | इसे पद्मा एकादशी (Padma Ekadashi ),डोल ग्यारस (Dhol Gyaras )और परिवर्तनीय एकादशी (Parivratniya Ekadashi ) के नाम से भी जाना जाता है |

jaljhulani ekadashi mahtav


कहते है इस जल झूलनी ग्यारस के दिन भगवान विष्णु जी अपने शयन पर करवट बदलते है | इसी दिन माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के कपडे भी पहली बार धोये थे | इस दिन जो भक्त पूर्ण लग्न से व्रत करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है |

जन्माष्टमी के बाद पहली ग्यारस 

कृष्ण जन्म के बाद यह पहली एकादशी होती है अत: जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखते है , उन्हें यह व्रत भी रखना चाहिए .

पद्मा (जलझूलनी एकादशी ) व्रत कथा

जलझुलनी एकादशी की कथा इस तरह है | एक बार सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए। उनके राज्य में प्रजा बहुत प्रसन्न थी | राज्य में रहने वाले सभी तन मन धन से सुखी थे | पर समय का चक्र ऐसा फिर कि एक बार इस राज्य में अकाल पड़ गया और लगातार 3 वर्ष तक वर्षा नही हुई | इससे राज्य में अन्न और पीने के पानी की अत्यंत कमी हो गयी | प्रजा व्याकुल हो उठी और राजा ने इस दुखद समय को दूर करने के लिए भगवान विष्णु की शरण ली |

विष्णु भगवान ने उन्हें विधि विधान से जलझुलनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी | राजा मान्धाता ने इस व्रत को नियम पूर्वक किया और कुछ दिनों में ही व्रत के प्रभाव से राज्य में बहुत अच्छी वर्षा हुई | राज्य में फिर से खुशियों का मेला छा गया |

छोटे से कृष्णा के एक संस्कार से जुड़ी है ये एकादशी

शिशु के जन्म के बाद जलवा पूजन, सूरज पूजन या कुआं पूजन का विधान है। उसी के बाद अन्य संस्कारों की शुरूआत होती है। यह पर्व उसी का एक रूप माना जा सकता है। शाम के वक्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को झांकी के रूप में मन्दिर के नजदीक किसी पवित्र जलस्रोत पर ले जाया जाता है और वहां उन्हें स्नान कराते है एवं वस्त्र धोते है और फिर वापस आकर उनकी पूजा की जाती है।

भगवान विष्णु की पालकी झाँकी :

डोल एकादशी के दिन भगवान कृष्ण और विष्णु जी मंदिरों से उनकी मूर्तियों को पालकी में बैठाकर गलियों में ढोलक मंजीरो के साथ और गीत गाण से फिराया जाता है | इनके दर्शन करने के लिए आस पास के भक्त उत्साह से आते है और शीश नवाकर अपने जीवन में मंगलकामना करते है |

भक्त जयकारो की गूंज के साथ इस पालकी के निचे से निकलना शुभ मानते है | कहते है की इस पालकी के निचे से निकलने पर शरीर निरोगी रहता है | प्रतिमाओ को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है |

भगवान वामन की पूजा :

इस दिन भगवान विष्णु के अवतार वामन देवता की पूजा और व्रत रखने का विशेष फल प्राप्त होता है | यह व्रत पाप मुक्ति में अति सहायक है | इस दिन भगवान की कमल के पुष्प से पूजा करना तीनो लोको की पूजा करने के समान है |

यह भी जरुर पड़े

देव शयनी एकादशी -क्यों होते है चार माह के लिए मांगलिक और धार्मिक कार्य बंद 


Post a Comment

Previous Post Next Post