आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय और कहानी

Know About Aadi Guru Shankracharya and his Religious works .

पूज्य श्री आदि गुरु शंकराचार्य जी के विषय में कुछ भी लिखना समुन्द्र के सामने एक नन्ही सी बूंद के समान है | उनकी महानता को लिखने के लिए कलम शाई सब तुच्छ पड़ जायेंगे | वे अलौकिक प्रतिभा , चरित्रबल , तत्वज्ञान और लोक कल्याण के लिए छोटी से उम्र में देश के प्रति समर्पण करने वाले महाज्ञानी थे | 

आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय

सोने के आंवले बरसा दिए थे शंकराचार्य जी ने

छोटी से उम्र में जब भी एक निर्धन ब्राहमण के घर भिक्षा मांगने जाते तो उन्हें हमेशा एक सुखा आंवला दिया जाता | एक दिन बालक शंकर को उस घर पर दया आ गयी और उन्होंने माँ लक्ष्मी के कनकधारा स्त्रोत को रच कर विनती कर दी | उसी रात उस ब्राहमणी के घर सोने के आंवले बरस गये |

ऐसे चमत्कारी संत आदि गुरु शंकराचार्य जी की जीवन और जीवन से जुड़ी रोचक बातो को हम आज इस आर्टिकल के माध्यम से जानेंगे. 

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उपनाम शंकर
पिता का नाम शिवगुरु भट्ट
माता का नाम सुभद्रा
पत्नी अविवाहित
जन्म-स्थान केरल के कालपी गाँव में
जन्म 508-9 ईसा पूर्व
मृत्यु 477 ईसा पूर्व (उम्र 33 वर्ष )
गुरु गोविन्द भगवत्पाद ,
सम्मान धर्मचक्रप्रवर्तक
दर्शन अद्वैत वेदान्त


केरल के कालड़ी गांव में हुआ था आदि गुरु शंकराचार्य का जन्‍म

इनका जन्‍म आज से तकरीबन ढाई हजार साल पहले 788 ई. में केरल के कालडी़ नामक ग्राम मे हुआ था। वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। बचपन मे ही उनके पिता का देहान्त हो गया। ये महान बुद्धि जीवी और जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे | उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन धर्म के नाम कर दिया और अथाय ज्ञान की प्राप्ति कर इसे संसार में प्रसारित किया | इन्होने हिन्दू धर्म के उथान के लिए प्रसिद्ध मंदिरों और देवालयों की स्थापना की | आज पूरा विश्‍व उन्‍हें आदि गुरु शंकराचार्य के नाम से जानता है।

आठ वर्ष की उम्र में कंठस्‍थ थे चारो वेद

आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे। उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। आठ वर्ष की उम्र में गृहस्‍थ जीवन को त्‍यागकर संन्‍यास जैसे जीवन का कठिन रास्‍ता अपनाने वाले इस बालक ने कई सालों तक पहाड़ों, जंगलों और कंदराओं में अपने गुरु की तलाश की। मध्‍य प्रदेश स्‍थित ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग में उन्‍हें गुरु गोविंद योगी मिले।

आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय


सनातन धर्म की रक्षा के लिये की चार पीठों की स्‍थापना

शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करते हुए देश में हिंदू धर्म का प्रचार किया। उन्‍होंने चारो दिशाओ में चार पीठो की स्‍थापना कर भारत को हिंदू दर्शन, धर्म और संस्‍कृति की अविरल सनातन धारा में पिरो दिया। आज भारत के चार दिशाओ में चार धाम जो है यह इन्ही के द्वारा बताये गये है | उन्‍होंने आज जिस हिंदू धर्म का स्‍वरूप हमें दिखाई देता है वह शंकराचार्य का ही बनाया हुआ है। जब वे सात वर्ष के हुए तो वेदों के विद्वान, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत और सोलहवें वर्ष में उन्‍होंने ब्रह्मसूत्र- भाष्य रच दिया। उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी। भारतीय इतिहास में शंकराचार्य को सबसे श्रेष्‍ठतम दार्शनिक कहा गया। उन्‍होंने अद्वैतवाद को प्रचलित किया।

आदि गुरु ने की दुर्लभ ब्रह्मसूत्र की रचना

उपनिषदों, श्रीमद्भगवद गीता एवं ब्रह्मसूत्र पर ऐसे भाष्य लिखे जो दुर्लभ हैं। इसके अलावा उपनिषद, ब्रह्मसूत्र एवं गीता पर भी उन्‍होंने लिखा। वे अपने समय में उत्कृष्ट विद्वान एवं दार्शनिक थे। आज भी दुनिया में उनके जैसा अद्वैत सिद्धान्त दुर्लभ है। इसकी कोई काट नहीं है। खुद भारतीय सभ्‍यता के इतिहास में शंकराचार्य जैसा विद्वान नहीं हुआ। भारत में सही मायनों में उनके बाद कोई दार्शनिक ही नहीं रहा। बाद में जितने भी दार्शनिक हुए उन पर शंकराचार्य का प्रभाव साफ देखा जा सकता है।

बद्रीनाथ से गहन सम्बन्ध

केरला से चलकर पद यात्रा करके वे बद्रीनाथ धाम आये और उसे उत्तर का एक हिन्दू धाम घोषित किया . इतना ही नहीं बद्रीनाथ में उन्होंने विशेष ब्राह्मण  पुजारियों को भी नियुक्त किया . उन्होंने नंबूदिरी ब्राह्मणों को चुना .आज भी बद्रीनाथ में इन्ही ब्राह्मणों के वंशज बद्रीविशाल की पूजा अर्चना करते है .  

20 सालो की असंभव यात्रा 

आदि शंकराचार्य सिर्फ 32 साल की उम्र में दुनिया को छोड़कर प्रभु चरणों में चले गये . सिर्फ 12 साल से लेकर 32 साल के बीच इन 20 वर्षो में उन्होंने भारत की पूरी यात्रा पैदल ही कई बार करी . आप समझ सकते है उस समय कितने खतरनाक मार्ग होते है और आवागमन के साधन तो थे ही नही , ना ही इतनी बसावट थी और ना ही इतनी जनसंख्या . कई राते जंगलो में बिठानी पड़ती थी , तो कई बार पहाड़ चढ़कर पार करने पड़ते थे , कभी रास्ते में नदियाँ उफान मारती थी तो कभी मौसम की मार . 

पर वे लगातार चलते गये , केरल से बद्रीनाथ तक तो सोमनाथ से कामख्या तक . 

उन्होंने इतने बड़े धर्मग्रन्थ भी लिखे तो इतनी कम उम्र में लिखना असंभव जैसा है . आदि शंकराचार्य के ऐसे ही चमत्कार थे जिन्होंने कई बार बौध धर्म के गुरुओ को धर्म वाद विवाद में पराजित किया था . 

महज 33 वर्ष की उम्र में देह त्याग

अपने जीवन में अपनी साधना , ज्ञान और धर्म के निर्मित इतने बड़े बड़े काम करने वाले आदि शंकराचार्य ने बहुत ही कम उम्र पाई थी . सिर्फ 33 वर्ष की उम्र में ही उनका बैंकुठ लोक में गमन हो गया . उस समय वो उत्तराखंड के केदारनाथ धाम के करीब ही थे .  उन्होंने ही छोटे चार धाम निर्धारित किये थे .  

सारांश 

  1. तो दोस्तों आपने जाना कौन थे आदि शंकराचार्य जिन्होंने चार धाम की स्थापना की थी , साथ ही हमने आदि शंकराचार्य के जीवन परिचय में उनसे जुड़ी रोचक बातें भी आपको बताई .  आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी .

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