क्यों किया जाता है जल में गणेश विसर्जन

What is the story behind the tradition of Ganesh Visarjan जिस तरह हर व्रत का उद्यापन करके उसे सम्पन्न किया जाता है , उसी तरह गणेश चतुर्थी पर विराजित गणेश प्रतिमाओ का 10 दिन बाद अनंत चतुर्दशी के दिन समुन्द्र या नदियों में विसर्जन किया जाता है |

ganesh visrajan kyo kiya jata hai


कुछ वेबसाइटो पर इस गणपति विसर्जन के पीछे का कारण महाभारत की कथा से दिया गया है |

गणेश विसर्जन के पीछे की कहानी

Story Behind Ganesh Chaturthi - उनके अनुसार त्रिकालदर्शी श्री वेद व्यास ने महाभारत की कथा गणेश जी से व्यास पोथी जगह पर लिखवाई थी | इस कथा को लगातार लिखते हुए गजानंद को 10 दिन का समय लगा था |

बिना रुके इतने दिन तक कथा लिखते लिखते अंत में कथा समाप्ति पर श्री गणेश के शरीर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ चूका था  |

गणेश की ऐसी हालत देखकर वेदव्यास जी उन्हें पास के सरोवर में ले गये और सरोवर के पानी में डुबकी दिलवाई | ऐसा करने से गणेश जी के शरीर का ताप कम हुआ और उन्हें अथाय ठंडक प्राप्त हुई | 

ganesh visrajan


तब से यह परम्परा बन गयी कि गणेश चतुर्थी पर स्थापित श्री गणेश का विसर्जन 10 दिन बाद जल में किया जायेगा | 

यही कारण है कि अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है और यह कहा जाता है . गणपति बप्पा मोरया , अगले साल तो फिर से आ

जल में विलीन करने की शक्ति

विसर्जन का अर्थ है पूर्णता विलीन कर देना जिसके लिए जल से अच्छा कोई माध्यम नही है |

गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की ऐसी प्रतिमा लगानी चाहिए जो विसर्जन पर जल में आसानी से विलीन हो जाये | ऐसी प्रतिमा के लिए आप हरियाली गणेश या मिट्टी के गणेश काम में ले |

ऐसी प्रतिमा ना लगाये – Don’t Establish Such Idols Which hard to mix into water

ऐसी प्रतिमा को स्थापित ना करे जो विलीन नही हो सके | विलीन नही होने के कारण वे खंडित होकर इधर उधर भटकती फिरती है | ऐसी प्रतिमाये पूण्य की जगह दोष दिलवाती है |

हो सके तो ऐसी गणेश प्रतिमाये स्थापित करे जो विसर्जन के बाद पाने में रहने वाले जीवो द्वारा खाद्य हो | जैसे चावल या गेंहू के गणेश |

महाराष्ट्र में गणेश पर्व की धूम

महाराष्ट्र में गणेश जन्मोत्सव की धूम देखने को मिलती है . गणेश जी को महाराष्ट्र में सबसे बड़े देवता के रूप में पूजा जाता है और उनका जन्मोत्सव (गणेश चतुर्थी ) बड़ी धूम धाम से कई दिनों तक मनाया जाता है . 

जगह जगह पंडाल लगाये जाते है और गणेश जी की विशालकाय प्रतिमाये लगाकर गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी के दिन तक रोज सुबह शाम पूजा की जाती है . 

फिर गाजे बाजे के साथ नाचते खुदते समुन्द्र के किनारे या नदी के पास जाकर जल में मूर्ति को विलीन कर दिया जाता है और प्रार्थना की जाती है अगले साल फिर इसी तरह से आपको स्थापित और जल विलीन किया जायेगा . 

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