ऋषि मार्कण्डेय मुनि की महिमा और जीवनी

मार्कण्डेय ऋषि ने मार्कण्डेय पुराण की रचना की जिसमे उन्होंने इसके प्रसंग क्रौष्ठि को सुनाये थे | इस पुराण में देवी कात्यायनी की विस्तार से महिमा बताई गयी है |

इनके पिता मृकंड थे और ये स्वयं देवादिव महादेव के परम भक्त थे | शिव कृपा से इनका जन्म हुआ और इनकी आयु सिर्फ 16 साल की थी पर इन्होने अपनी शिव भक्ति से काल को भी पीछे धकेल दिया था और मृत्यु पर शिव की कृपा से विजय प्राप्त कर ली थी . 

Rishi Markandey


मार्कण्डेय ऋषि की कथा

मृगश्रृंग नाम के एक बहुत बड़े संत हुए जिनका विवाह सुवृता के संग हुआ . विवाह के कुछ सालो बाद उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई . पर वो बालक कुछ विचित्र सा था और हमेशा उसके पुरे शरीर में खुजली होती थी . मृगश्रृंग ने उनका नाम मृकण्डु रखा . उस बालक ने अपने पिता की राह पर चल कर वेद पुराणों का अध्ययन किया और अपनी धार्मिक यात्रा आगे की . कुछ सालो बाद उनके पिता ने अपने पुत्र का विवाह मृदगुल मुनि की कन्या मरुद्वती से करवा दिया .

विवाह के बाद बहुत सालो तक जब उनके कोई संतान नही हुई तो वे दोनों दुखी रहने लगे . मृकण्डु ने तब भगवान शिव की घोर तपस्या पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए की .

शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और कहा की तुम्हे दीर्घ आयु वाला गुणरहित पुत्र चाहिए। या सोलह वर्ष की आयु वाला गुणवान पुत्र चाहते हो?”

मृकण्डु ने सोलह वर्ष की आयु वाले गुणवान पुत्र की चाह रखी. शिव ने उनकी इच्छा पूरी करी और उनके कुछ महीनो बाद गुणवान पुत्र का जन्म हुआ . इसका नाम मार्कण्डेय रखा गया .

माता पिता दोनों ने अपने अल्पआयु वाले पुत्र को अत्यंत प्रेम और शिक्षा दी . जब वो बालक 15 साल का हुआ तब माता पिता उदास रहने लगे . पुत्र ने जब उनसे इसके पीछे का कारण पूछा तो पिता ने उन्हें कहानी बता दी कि वो सिर्फ 16 साल की आयु लेकर आया है .

मार्कण्डेय ने तब अपने पिता को सांत्वना दी कि वो अपनी मृत्यु को शिव भक्ति से टाल देगा . यह कह कर मार्कण्डेय जी जंगल में चले गये और एक शिवलिंग की विधिपूर्वक स्थापना करके उसकी पूजा अर्चना करने लगा .

जब उनकी मृत्यु का दिन आया तब भी मार्कण्डेय जी शिव भक्ति में लीन थे . यमराज मार्कण्डेय के करीब आकर कहने लगे की चलो तुम्हारा समय पूरा हो चूका है .

मार्कंडेय ऋषि की शिव भक्ति से हराया काल को

तब मार्कण्डेय ने कहा कि अभी वह शंकर जी कि स्तुति कर रहे हैं। जब तक वह पूरी कर नही लेते तब तक प्रतीक्षा करें। काल ने ऐसा करने से मना कर दिया तो मार्कण्डेय ऋषि जी ने विरोध किया। काल ने जब उन्हें ग्रसना चाहा तो वे शिवलिंग से लिपट गए। इस सब के बीच भगवान् शिव वहां प्रकट हुए।

उन्होंने काल के सीने पर लाट मारी . यमराज ने शिव भक्ति के सामने अपनी हार स्वीकार कर ली और चले गये .

शिव जी मार्कण्डेय की भक्ति और बुद्धि पर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अनेक कल्पो तक जीवन प्रदान करके चले गये .

इस तरह आपने देखा कि एक भक्त ने किस प्रकार शिव भक्ति से अपनी मृत्यु को टाल दिया .


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दुर्वासा मुनि कौन थे ? क्या कहते है इनके बारे में शास्त्र

शिव ने प्रसन्न होकर इन्हे मृत्यु पाश से मुक्त करवाया |

मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” जो मृत्युंजय पंचांग में प्रसिद्ध है और यह मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है। इस स्तोत्र द्वारा प्रार्थना करते हुए भक्त के मन में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बन जाता है कि उसने भगवान “रुद्र” का आश्रय ले लिया है और यमराज भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा। यह स्तोत्र 16 पद्यों में वर्णित है और अंतिम 8 पद्यों के अंतिम चरणों में “किं नो मृत्यु: करिष्यति” अर्थात मृत्यु मेरा क्या करेगी, यह अभय वाक्य जुड़ा हुआ है।

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मार्कण्डेय ऋषि के द्वारा लिखा गया महामृत्युंजय स्तोत्र

ॐ अस्य श्री महा मृत्युंजय स्तॊत्र मंत्रस्य
श्री मार्कांडॆय ऋषिः अनुष्टुप् छंदः
श्री मृत्युंजयॊ दॆवता गौरीशक्तिः मम सर्वारिष्ट
समस्त मृत्त्युशांत्यर्थं सकलैश्वर्य प्राप्त्यर्थं
जपॆ विनियॊगः अथ ध्यानम्

चंद्रर्काग्निविलॊचनं स्मितमुखं पद्मद्वयांतः स्थितम्’
मुद्रापाश मृगाक्ष सत्रविलसत् पाणिं हिमांशुं प्रभुम्

कॊटींदु प्रहरत् सुधाप्लुत तनुं हारादिभोषॊज्वलं
कांतं विश्वविमॊहनं पशुपतिं मृत्युंजयं भावयॆत्

ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥

नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥

नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥

वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥

दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥

गंगादरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥

त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥

भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥

अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥

आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥

अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥

प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥

व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥

गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥

अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥

स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥

कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥

शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥

उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम्‌ ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥

फलश्रुति

मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत्‌ शिवसन्निधौ ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित्‌ ॥ २० ॥

शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम्‌ ।
शुचिर्भूत्वा पठॆत्‌ स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम्‌ ॥ २१ ॥

मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम्‌ ।
जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥

तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड ।
इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत्‌ ॥ २३ ॥

नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ ।
प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥

॥ इती श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम्‌ ॥

मार्कण्डेय  महामृत्युंजय मंत्र की रचना

*मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.*

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

मंत्र का अर्थ : 

हम उस तीन आँखों वाले शिव की पूजा करते है जो सुगंध से भरे हुए और पालन पोषण करने वाले है .

जैसे फल शाखा से मुक्त हो जाते है वैसे ही हे शिव हमें मृत्यु और नश्वरता से दूर हो जाए .


सारांश 

  1. मृत्यु को हराने वाले ऋषि मार्कण्डेय मुनि की पौराणिक कहानी जिसमे आपने जाना कि कैसे उन्होंने शिव भक्ति से यमराज से अपने प्राण बचाए और फिर महामृत्युंजय स्तोत्र की रचना की .  आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी. 


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