ब्रह्मा को शिव के कोप से बनना पड़ा मृगशिरा नक्षत्र

मृगशिरा नक्षत्र की पौराणिक कहानी  हिन्दू धर्म में तीन महान शक्तियों ब्रह्मा जी , विष्णु जी और महेश को माना गया है | ब्रह्मा जी जगत के निर्माणकर्ता है , वही विष्णु को पालनहार तो शिव को संहारक की भूमिका प्राप्त है | ये तीनो ही जगत को सही नियमो से चलने की भूमिका अदा करते है |  इसके साथ ही हिन्दू धर्म में पांच मुख्य देवी देवता बताये गये है जिसमे गणेश , शिव , विष्णु , माँ दुर्गा और सूर्य देव मुख्य है . 

शिव के डर से नक्षत्र बने ब्रह्मा जी

क्या आप जानते है की ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र कितने होते है और उनका महत्व क्या है | आज हम आपको बताएँगे की इनकी संख्या 27 बताई गयी है जिसमे एक है मृगशिरानक्षत्र | यह कोई और नही बल्कि ब्रह्मा जी है जो शिव के कोप से नक्षत्र बने हुए है | आइये जाने इस प्रसंग से जुडी पौराणिक कथा की ऐसा क्या हुआ कि ब्रह्मा जी को शिव जी के क्रोध से बचने के लिए बनना पडा नक्षत्र .  

ब्रह्मा जी का नक्षत्र बनने की पौराणिक कहानी 

एक बार प्रजापिता ब्रह्मा अपनी दुहिता संध्या पर ही मोहित हो गए । संध्या अत्यंत सुंदरी थी | कामुक ब्रहमदेव ने उसके साथ हठपूर्वक रमण करने का प्रयत्न किया | पर उनकी पुत्री हिरणी ( मृगी ) का स्वरुप धारण कर भागने की कोशिश की तो कामातुर ब्रह्मा भी हिरन भेष में उसका पीछा करने लगे।

तब भगवान शिव ने इस पाप को होने से रोकने के लिए हाथ में धनुष लेकर ब्रहम देव पर बाण चला दिया | रूद्र के रौद्र रूप और बाण को देखकर भयभीत ब्रह्मा आकाश दिशा मृगशिरा नक्षत्र बन कर रहे गये । पर शिवजी के बाण ने उन्हें आज तक नही छोड़ा | वह बाण भी आर्द्रा नक्षत्र के रूप मे आज तक ब्रह्मा जी रूपी मृगशिरा नक्षत्र के पीछे पड़ा हुआ है |

आकाश में आप देखेंगे रोहिणी नक्षत्र के रूप मे मृगीरूपधारी संध्या और उसके पीछे मृगशिरा नक्षत्र (मृगशिर के ३ तारे हैं व उनका रूप हिरणियों जैसा है) के रूप मे मृगरूपधारी ब्रह्मा जी और आर्द्रा नक्षत्र के रूप मे महादेव का बाण |

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सारांश 

  1. तो दोस्तों आपने जाना कि कैसे ब्रह्मा को शिव जी के क्रोध से बचने के लिए बनना पड़ा नक्षत्र . आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी  

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