कुरुक्षेत्र तीर्थ की महिमा और शास्त्रों में वर्णन

Kurukshetra Tirth Sthal Ka Mahatav : कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल हरियाणा राज्य की एक ऐतिहासिक जगह है | इसी स्थान पर द्वापर  युग में महाभारत की सबसे बड़ी लड़ाई कौरव और पांडवो के बीच लड़ी गयी थी | इसी पावन भूमि पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से संसार को भगवत गीता का अद्भुत ज्ञान दिया था |

कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल की महिमा और महत्व

भारत की सात धार्मिक और पौराणिक नगरियो 

द्रषद्वती (घग्गर ) नदी के उत्तर और सरस्वती नदी के दक्षिण में धर्मभूमि के नाम से यह स्थान जाना जाता है | इस तीर्थ स्थल में जाने मात्र की इच्छा से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते है | इस स्थान की धार्मिक यात्रा से राजसुय व अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है |

इस पावन नगरी में पूर्वकाल में ऋषियों ने मंत्रोचार और हवन कर इसे दैविक सुखो से भर दिया |

कुरु महाराज ने की थी इस राज्य की स्थापना

वामन पुराण के अध्याय 22 में बताया गया है कि महाराज कुरु ने सरस्वती नदी के किनारे स्वर्ण रथ में बैठकर स्वर्ण हल से कृषि क्षेत्र को ज्योता था | इसमे यमराज का भैंसा और भगवान शिव का नंदी उन्होंने काम में लिया | यह अष्टांग धर्म की कृषि में जमीन तैयार करने का प्रयास था | राजा कुरु ने 48 कोस की भूमि तैयार की थी | जिसमें कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त कैथल, करनाल, पानीपत और जिंद का क्षेत्र सम्मिलित हैं।

अब राजा को इस भूमि पर बोने के लिए बीज की जरुरत थी | उन्होंने भगवान् विष्णु का ध्यान और आवाहन किया | भगवान विष्णु प्रकट हो गये |

राजा कुरु ने अपनी दांयी भुजा विष्णु को समर्पित कर बीजो की मांग की | तब विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस भुजा के सहस्त्र टुकड़े कर कृषि क्षेत्र में बो दिया | इस बीजारोपण के बाद कुरु ने अपना सम्पूर्ण शरीर विष्णु को बीजो के लिए समर्प्रित कर दिया | विष्णु ने सम्पूर्ण शरीर का विच्छेद कर भूमि में जोत दिए |

भगवान विष्णु इस महादान तप से अत्यंत प्रसन्न हुए और कुरु आत्मा से वरदान मांगने की बात कही |

राजा कुरु ने विष्णु भगवान से विनती करी कि जितनी भूमि जोती गयी है वो धर्मक्षेत्र बन जाये और उसमे शिव सहित सभी देवी देवता निवास करे |

इस भूमि पर किया गया दान , स्नान , तप , यज्ञ , उपवास का पूण्य अक्षय हो जाये | यहा मृत्यु को प्राप्त होने वाला मोक्ष को प्राप्त हो |

भगवान् विष्णु ने राजा कुरु के भावो से प्रसन्न होकर उन्हें फिर से पूर्ण शरीर और वरदान दे दिया |

कुरुक्षेत्र में पवित्र तीर्थ स्थल

ब्रहम सरोवर :

यह आदि तीर्थ पहले ब्रहमसर फिर रामरुद्र कहलाया अब वर्तमान में इसे ब्रहम सरोवर पुकारा जाता है | वामन पुराण के अनुसार चैत्र माह की कृष्ण अष्टमी और चतुर्दशी को स्नान करने वाला व्यक्ति परब्रहम की प्राप्ति करता है | सूर्य ग्रहण पर यहा लाखो भक्त देश भर से स्नान करते है |

ब्रह्म सरोवर कुरुक्षेत्र


 कहते है यहा सूर्य ग्रहण पर किया गया स्नान एक हजार अश्वमेघ यज्ञो के समान फल देता है | यह कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से सिर्फ 2 किमी की दुरी पर है | यहा कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड इस स्थल की देख रेख करता है |

सन्निहित सरोवर :

सन्निहित सरोवर का अर्थ है संचित जल का स्थान | यहा अमावस्या स्नान का अत्यंत महत्व है क्योकि सभी तीर्थ यहा एकत्रित होते है | सूर्यग्रहण के समय इस सरोवर के जल का स्पर्श भी 100 अश्वमेघ यज्ञ के तुल्य होता है | दधिची का महादान इंद्र को भी इसी स्थान पर हुआ था |

ज्योतिसर – गीता उद्गम स्थल

ज्योतिसर से ही गीता का जन्म हुआ था अर्थात इसी स्थान पर श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था |

चन्द्रकूप :

धर्मराज युधिष्टर ने कौरवो पर जीत दर्ज करने के बाद चार मुख्य कुंवो का निर्माण करवाया था जिसमे से के था चन्द्रकूप

बाण गंगा :

ब्रह्मा सरोवर से 3 मील की दुरी पर है | कहते है जब युद्ध में भीष्म बाण शैय्या पर लेटे हुए थे तब उन्हें पानी पिलाने के लिए अर्जुन ने जमीन में बाण मारकर गंगा जल निकाला था | 

बाण गंगा तीर्थ स्थल


अर्जुन ने यह पानी भीष्म पितामाह को पिलाया और तब से यह बाण गंगा के नाम से जाना जाने लगा | वर्तमान में यहा एक कुण्ड है जिसमे स्नान करके यात्री पुण्य की प्राप्ति करते है |

नरकातारी :

इस तीर्थ स्थल का आशय है नरक से तारने वाला | इस तीर्थ स्थल के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है | यह ब्रहम सरोवर से 3 किमी की दुरी पर है | इस तीर्थ के पूर्व में ब्रह्मा जी , दक्षिण में महेश्वर , पश्चिम में रूद्र पत्नी और उत्तर में विष्णु है | इन सभी के मध्य में होने के कारण इसे अनरक तीर्थ भी कहते है |

मार्कण्डेय तीर्थ

यहा इस जगह कई साल महान ऋषि मार्कण्डेय ने तपस्या और ज्ञान की प्राप्ति की थी और उनका यही आश्रम था . यहा पास ही मारकंडा नदी है जिसमे भक्त लोग स्नान करते है और सूर्य देवता की जल से उपासना करते है . 

इनके अलावा भी बहुत सारे धार्मिक स्थल यहा स्तिथ है |

गंगा सागर तीर्थ स्थल की यात्रा और पौराणिक महत्व 

नैमिषारण्य पवित्र भूमि तीर्थ स्थान का महत्व

सारांश 

  1. कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल का पौराणिक महत्व में आपने जाना कि महाभारत युद्ध की यह स्थली आज कौनसे दर्शनीय स्थलों से सजी हुई है .  आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी .

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