कोटि माहेश्वरी देवी तीर्थ स्थल की जानकारी

Koti Maheshwari Tirth Yatra . उत्तराखंड के कण कण में भगवान है और इतनी सारी धार्मिक नदियों का उद्गम और इतने सारे पौराणिक काल के मंदिर इस पुरे क्षेत्र को ही धाम बनाते है . यहा महाभारत , रामायण , दुर्गा सप्तशती , शिव पुराण आदि से जुड़े प्रसंग आते है . 

कालीमठ तीर्थ स्थल


आज हम उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में जिस तीर्थ स्थल की बात करने वाले है वो थोडा दुर्गम है पर बहुत ही पौराणिक मान्यता वाला एक सिद्ध स्थान है . इस जगह का नाम है कोटि माहेश्वरी देवी तीर्थ स्थल . 

सरस्वती नदी बन जाती है काली गंगा

आदि शक्ति पीठ काली मठ में जब यह प्रवेश करती है तो इस सरस्वती नदी का नाम ही काली गंगा पड़ जाता है . 

फिर यही नदी आगे चल कर केदारनाथ मंदिर से आने वाली मन्दाकिनी नदी से मिल जाती है .  यहा ध्यान रखने वाली बात यह है कि भारत में एक ही सरस्वती नदी नही है बल्कि कई सरस्वती नदियाँ है . 

माँ काली का मंदिर - काली मठ 

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहा काली माँ की कोई मूर्ति नही है . माँ काली की पूजा एक यन्त्र के रूप में की जाती है . 

कालीमठ मंदिर उत्तराखंड


कहते है माँ ज्योतिस्वरुपा यही से प्रकट हुई और यही से अंतर्धान हो गयी थी और यह यंत्र रह गया था .  कहते है कि माँ काली के ज्वलंत रौद्र रूप  ने इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार करके उसका रक्त पानी किया था . 

घंटियों का पूल 

यहा आपको मंदिर में जाते हुए रास्ते में एक पूल दिखेगा जिसमे हजारो घंटियाँ लगी हुई है. भक्त लोग जब पूल से दर्शन करने मंदिर जाते है तो इसे बजाते है . यहा की मान्यता है कि घंटी बजाने से आपके साथ एक सकारात्मक उर्जा शामिल हो जाती है . 

घंटियों का पूल


कैसा है यह मंदिर अन्दर से 


माँ काली का मंदिर कालीपीठ


निचे चांदी का बना वर्गाकार यंत्र बना हुआ है जिसके ऊपर कलश नुमा यन्त्र है . इस चांदी के यन्त्र पर स्वस्तिक चिन्ह  रोली से बनाया गया है जिसके मध्य में ही इस कुंद को रखा गया है . यह माँ काली का स्वरुप है . 

दुनिया का सबसे अनोखा शिवलिंग रुक्ष महादेव

उत्तराखंड में आपको बहुत से ऐसे शिवलिंग रूपी पत्थर मिल जायेंगे जिनकी रचना स्वयं प्रकृति ने करी है . ऐसा ही एक शिवलिंग रूपी एक गोल चट्टान यहा काली गंगा के तट पर दिखेगी , इसे रुक्ष महादेव शिवलिंग कहा जाता है . 

रुक्ष महादेव कालीमठ

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार रौद्र काली का रूप शांत करने के लिए इसी जगह शिव जी लेटे हुए थे और अत्यंत क्रोधित काली का पैर शिवजी की छाती पर आ जाता है और फिर वो शांत हो जाती है . स्थानीय लोग कहते है कि यह शिवलिंग उन्ही लेटे हुए शिवजी का प्रतीक है .

भक्ति ने इस शीला पर त्रिपुंड बना रखा है जिसे देखने से यह पूर्ण शिवलिंग प्रतीक होता है . इनके पास ही नंदेश्वर बाबा विराजित है , एक तरफ ध्वजा पंक्तिबर्ध है तो दूसरी तरफ कल कल करती काली गंगा . 

इतना मनोरम द्रश्य की मुख से स्वत: ही ॐ नमः शिवाय मंत्र गुंजायमान हो जाता है .

 दो नदियों का संगम 

यही नजदीक में आपको दो पवित्र नदियों का संगम मिलेगा जिसके नाम है काली गंगा और मन्दाकिनी नदी . इस संगम पर जो नदियों की आवाजे आएगी वो किसी दिव्य मंत्र का जाप के समान है . 

काली गंगा और मन्दाकिनी का मिलन


कुछ देर आँखे बंद करके ध्यान लगाके जब आप इस आवाज की दिशा में मन को लगायेंगे जो नाना प्रकार की आवाजे आपको सुनाई देगी . आपके लगेगा ब्रह्माण्ड की आवाज है , आपको लगेगा की समय रुक गया . 


महाकवि कालीदास की समाधी

महाकवि कालीदास जी ने इन्ही घाटियों और पर्वतों की अनुपम सुन्दरता के बीच रहते हुए अनमोल साहित्य की रचना की थी . यही इनकी महासमाधी बनी हुई है . 

बहुत से लोग इनकी महासमाधि को लंका में बताते है . 

कालिदास समाधी

सारांश 

  1. आपने जाना उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में इस्तिथ आदिदेवी काली देवी के कालीमठ मंदिर के बारे में , साथ ही हमने आपको बताया कि इस जगह का पौराणिक महत्व क्या है .आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी 

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