माँ विंध्यवासिनी देवी और उनके मंदिर की जानकारी 

Maa Vindhyavasini Temple Mirjapur पुराणों में जिक्र आता है भारत के धार्मिक पर्वतो में से एक विन्ध्याचल पर्वत का . इस विंध्याचल पर्वत पर विराजमान माता का नाम है विंध्यवासिनी देवी जिस योगमाया या महामाया के रूप में भी जाना जाता है . यह इस जगत की आद्य शक्ति है जिसके द्वारा ही ब्रह्मा ,  विष्णु , महेश और सभी देवी देवता अपने कार्यो को निभाते है . इससे पता चलता है कि यह कितना बड़ा धाम है माँ जगदम्बे का . 

आज हम इस आर्टिकल में विंध्यवासिनी देवी से जुड़ी सभी जरुरी जानकारी आपको बताएँगे . साथ ही जानेंगे इस मंदिर का इतिहास और पीछे की कहानी . 

माँ विन्ध्यावासिनी देवी

कैसा है माँ विंध्यवासिनी देवी का रूप ?

माँ विन्ध्यवासिनी देवी

माँ की मूर्ति का रंग श्याम है और आँखे बड़ी बड़ी है जो चेहरे के बाहर तक निकली हुई है . माँ के श्रंगार में मुंड माला धारण है जो चांदी से बनी हुई है . माँ ने स्वर्ण मुकुट धारण कर रखा है . पीले और लाल रंग से शंगार किया हुआ है . उनकी सवारी एक रजत धातु से निर्मित शेर है और सामने उनके चरणों में उनके मेहंदी लगे चरण पद रखे हुए है . 

माँ विंध्यवासिनी देवी के जन्म की कथा

द्वापर में कृष्ण के जन्म के समय ही नन्दगाँव में एक कन्या का भी जन्म हुआ था , आकाशवाणी के द्वारा तब वासुदेव जी को बताया गया कि उनके कृष्णा को यमुना पार  नन्दगाँव में नन्द बाबा के घर छोड़ना है और इसके बदले उनके नन्दबाबा और यशोदा के घर जन्मी  एक नवजात कन्या को लेकर आना है और उसे देवकी को देना है . 

yogmaya janm ki katha


जब कंस को पता चला कि देवकी ने अपनी आठवी सन्तान को जन्म दे दिया है तो वो उसे मारने जेल आया और उसने जैसे ही उस संतान को उठाकर दीवार की तरफ फैका तो वो कन्या हवा में उड़ गयी और कहने लगी कि कंस तेरी मृत्यु तो जन्म ले चुकी है और सकुशल यहा से दूर है . 

ऐसा कह कर वो कन्या विन्ध्याचल पर्वत पर चली गयी और माँ विंध्यवासिनी देवी के रूप में मूर्ति के रूप में स्थापित हो गयी . 

अत: इस तरह विंध्यवासिनी देवी जो ही योगमाया थी वो नन्द बाबा और यशोदा की संतान थी

कई धार्मिक ग्रंथो में है जिक्र

माँ विंध्यवासिनी के बारे में कई धार्मिक ग्रंथो में जिक्र मिलता है .  श्रीमद्भागवद्पुराण में देवी योगमाया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है. दुर्गा सप्तशती के अध्याय 11 में स्वयं माँ कात्यायनी देवताओ से कहती है कि वो द्वापर में नन्दगाँव में जन्म लेगी और योगमाया के नाम से जानी जाएगी . 

सबसे बड़ी शक्ति

श्री भागवत पुराण में बताया गया है कि माँ विन्ध्यवासिनी सबसे बड़ी आद्य शक्ति जगदम्बा का ही रूप है जिसकी शक्ति से ही ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण तो विष्णु जी पालनहार और शिव जी संहार करते है . 

मां विंध्यवासिनी मंदिर कहाँ स्थित है? ( Where is Maa Vindhyanchal Temple? )

विन्ध्याचल पर्वत पर स्तिथ यह मंदिर उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर में गंगा नदी के किनारे विन्ध्य पर्वत पर बना हुआ है . ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर 51 शक्तिपीठो की स्थापना से पहले से ही है . 

maa vindhyachal

यह पूरा संसार माया से ही रचित है और योगमाया सृष्टि के पहले से ही यहा विराजित है और ब्रह्मा जी उनकी शक्ति से प्रेरणा लेकर इस संसार को रचे है . 

ऐसा शास्त्रों में बताया गया है कि 

क्यों विन्ध्याचल पर्वत पर ही आई आद्य शक्ति माता ?

हिन्दू धर्म में पहाड़ो को भी पूजनीय बताया है और हमने पहले आपको भारत के पवित्र और धार्मिक पर्वतो की जानकारी दी थी जिसमे कैलाश पर्वत , हिमालय , विन्ध्याचल , ड्रोनगिरी , गोवर्धन आदि की महिमा बताई थी . 

पहाड़ो में हिमालय सबसे बड़ा था और विन्ध्याचल छोटा अत: यह बात विन्ध्याचल को बहुत खटक रही थी . उसने इस कष्ट से उभरने के लिए ब्रह्मा जी की बहुत कठोर तपस्या की , हजारो सालो की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि क्या चाहते हो विन्ध्य ? 

विन्ध्य पर्वत ने कहा कि उन्हें ऐसा वरदान दे कि वो जितना चाहे उतना बड़ा हो जाए , ब्रह्मा जी उसकी बात मान ली . 

अब विन्ध्य पर्वत अपनी इच्छा अनुसार बड़ा होने लगा और इतना बड़ा हो गया कि धरती पर सूर्य की रोशनी आनी बंद हो गयी . 

इससे संसार में त्राहिमाम हो गया , जीव जन्तुओ के प्राणों पर संकट आ गया . तब ब्रह्मा जी ने मुनि अगस्त को वहाँ भेजा . 

मुनि अगस्त विन्ध्य पर्वत के गुरु भी थे अत: अपने गुरु को देखकर विन्ध्य पर्वत ने शीश झुकाकर प्रणाम किया . गुरु अगस्त ने उन्हें आशीष देककर यह आदेश दिया कि वो दक्षिण की यात्रा पर जा रहे है . जब तक वे नही आये विन्ध्य तुम इसी तरह झुक कर मेरी राह देखो . 

विन्ध्य के इसी तरह से झुकने पर धरती पर फिर से सूर्य का प्रकाश आने लग लगा और सभी का जीवन सामान्य हो गया . 

सालो तक ऋषि अगस्त नही आये तब फिर से विन्ध्य ने उसी अवस्था में शिवजी की तपस्या की और शिवने दर्शन देकर विन्ध्य को समझाया कि कोई आकार से बड़ा नही होता है . यदि तुम अपने ऊपर माँ शक्ति का स्थान बना लोगे तो तुम पर्वतो में सबसे बड़े बन जाओगे . 

इसी कारण विन्ध्य देवी विन्ध्याचल पर्वत पर विराजमान है . 

माँ विंध्यवासिनी का सम्पूर्ण इतिहास

श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में एक प्रसंग आता है जिसमे बताते है सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया.  तब विवाह करने के बाद स्वायम्भुव मनु ने 

अपने हाथो से एक मूर्ति का निर्माण किया जो एक देवी की थी और उस मूर्ति की कई सालो तक घोर तपस्या की . उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ जगदम्बा ने उन्हें दर्शन दिए और कई मनु की इच्छा पर उस मूर्ति में समा गयी और यह मूर्ति ही विन्ध्याचल पर्वत पर विराजमान है . 

इसके बाद इस संसार का विस्तार आगे बढ़ा अत: इस मूर्ति का इतिहास संसार से पहले का है . 

माँ विंध्यवासिनी देवी मंदिर कैसे जाए 

आपको सबसे पहले उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर तक आना होगा जो कि यूपी का एक प्रसिद्ध शहर है . यहा तक आप ट्रेन बस से आ सकते है .मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से सिर्फ 10 किमी की दुरी पर आपको विन्ध्य माता का मंदिर है . 

इसके बाद आप लोकल बस कार टैक्सी से माँ विंध्यवासिनी के मंदिर तक जा सकते है . 

सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन विंध्याचल रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से  सिर्फ 1 किमी की दुरी पर है .

हवाई जहाज से :- यदि आप हवाई यात्रा के द्वारा आना चाहते है तो आपको मिर्जापुर से 45 किमी की दुरी पर स्तिथ   लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट पर उतरना होगा उसके बाद आप बस कार द्वारा आ सकते है .    

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