अनोखा मंदिर जहा भक्त चढाते है माताजी को हथकड़ी

हिन्दू मंदिरों में देवी देवताओ को भोग , ध्वजा , नारियल , पुष्प आदि भेट की जाती है पर देश में कुछ ऐसे अनोखे मंदिर है जहा भक्त कुछ अलग ही चीजे भेट में देते है | पहले हमने बताया था की एक काली मंदिर में भक्त ताले चढाते है | ऐसे ही एक मंदिर में गोलू देवता मंदिर जहा भक्त चढाते है घंटी ही घंटी |

mata ko hathkadi

हमने एक चाइनीज काली माता मंदिर भी बताया था जहाँ नुडल्स और मेग्गी का भोग लगता है. 

आज हम जिस माता रानी के मंदिर की बात करने वाले है वहा मन्नत पूरी होने पर भक्त चढाते है हथकड़ी | आखिर यह परम्परा कैसे शुरू हुई , किसने की यह भेट चढाने की शुरुआत | आइये जानते है |

कहाँ है यह अनोखा मंदिर

राजस्‍थान के प्रतापगढ़ जिले में जोलर ग्राम पंचायत नाम की जगह है जहा है माता रानी का " दिवाक मंदिर "  | यह मंदिर प्रतापगढ़ से 35 किमी की दुरी पर एक ऊँची पहाड़ी पर है .  यहा मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त लोग हथकड़‍ियां और बेड़‍ियां चढ़ाते हैं |

देवाका माता

क्यों चढाते है हथकड़‍ियां

इस मंदिर में 200 साल पुराना एक त्रिशूल है जिस पर सैकड़ो साल पुरानी हथकड़‍ियां आज भी चढ़ी हुई दिखाई देती है | यहा वे भक्त आते है जिनके परिजन जेल की सलाखों में बंद है | वे माता रानी से उनकी रिहाई की मन्नत मांगते है और इस प्राचीन त्रिशूल पर हथकड़ी चढाते है |

हथकड़ी वाली भेंट

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भक्त चढाते है त्रिशूल भी 

यहा आने वाले भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति पर त्रिशूल भी चढाते है जो माता रानी के प्रभाव से स्वास्थ्य लाभ पाते है या फिर माँ उनकी कानून से अलग कोई दूसरी मनोकामना पूर्ण करती है . हम सभी जानते है कि माँ शक्ति (कात्यायनी ) का सबसे मुख्य हथियार उनका त्रिशूल ही है . 

देवाका माता मंदिर

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कैसे हुई यह परम्परा शुरू

बहुत साल पहले यह स्थान एक जंगल हुआ करता था और यहा डाकू डकैत रहते थे | उनकी आराध्य देवी माता माता रानी थी | कहते है की वे जब भी डाका डालने जाते थे , सबसे पहले माता रानी के दरबार में शीश झुकाते और अपनी सफलता की कामना किया करते थे | वे यदि पकडे जाते तो उनके साथी माता रानी को हथकड़ी चढ़ाकर जेल से रिहा होने की मन्नत माँगा करते थे और कई बार माँ उनकी मन्नत पूर्ण भी करती थी |

इसी कारण यहा माता रानी को हथकड़ी चढाने की परम्परा बन गयी .

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