वामन जयंती | वामन द्वादशी | वामनावतार कथा | व्रत विधि |

Vaman Jayanti | Vaman Dwadashi | Vaman Avtar Katha | वामन जयंती भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन के रूप में पांचवां अवतार लिया था। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए। इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं।

vaman jayanti avatar


वामन अवतार की कथा

Story of Vishnu Incarnation of Vamana वामनावतार के विषय मे श्री मदभगवदपुराण मेँ एक कथा आती है जिसके अनुसार एक बार देव-दैत्य युद्ध मेँ दैत्य पराजित हुए तथा मृत दैत्योँ को लेकर वे अस्ताचल की ओर चले जाते है । दैत्यराज बलि इन्द्र वज्र से मृत हो जाते है, तब दैत्यगुरू शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि तथा दूसरे दैत्योँ को जीवित तथा स्वस्थ कर देते है । राजा बलि के लिये शुक्राचार्य एक यज्ञ का आयोजन करते है तथा अग्नि से दिव्य बाण तथा अभेद्य कवच पाते है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण कर देती है।

असुर सेना को आते देख देवराज इन्द्र समझ जाते है कि इस बार वे असुरोँ का सामना नहीँ कर पायेँगे तथा देवता भाग जाते है । स्वर्ग दैत्योँ की राजधानी बन जाता है । तब शुक्राचार्य राजा बलि के अमरावती पर अचल राज्य के लिए सौ अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाते है । इन्द्र को राजा बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि राजा बलि के सौ यज्ञ पूरे होने पर फिर उनकोँ स्वर्ग से कोई नहीँ हिला सकता ।


इंद्र की विनती पर विष्णु ने धरा वामन अवतार

इसलिये इन्द्र भगवान विष्णु की शरण मेँ जाते हैँ तथा भगवान विष्णु इन्द्र को सहायता करने का आश्वासन देते है तथा भगवान विष्णु वामन रूप मेँ अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैँ । इधर कश्यप जी के कहने पर माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती है जो कि पुत्र प्राप्ति के लिए होता है । तब भाद्रपद मास की शुकल पक्ष की द्वादशी के दिन प्रभु, माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते है तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते है ।

महर्षि कश्यप ऋषियोँ के साथ उनका उपनयन संस्कार करते है । वामन बटुक को महर्षि पुलक जी यज्ञोपवीत, अगस्त्य जी ने मृगचर्म, मरीचि जी ने पलाशदण्ड, सूर्य जी ने छ्त्र, भृगु जी ने खड़ाऊँ, सरस्वती जी ने रुद्राक्ष माला तथा धन के देवता कुबेर ने भिक्षा पात्र दिये । तत्पश्चात भगवान वामन पिता की आज्ञा लेकर बलि के पास जाते है । उस समय राजा बलि नर्मदा नदी के उत्तर तट पर अन्तिम यज्ञ कर रहे होते है । वामन अवतारी श्री विष्णु राजा बलि के पास पहुच जाते है |

बलि  ने देना चाहा ब्राह्मण को दान

राजा बलि वामन जी को देख कर पूछते है कि आप कौन है । तब वामन जी उत्तर देते है कि हम ब्राह्मण है । फिर बलि ने पूछा कि यहाँ आने से पहले तुम्हारा कहाँ वास रहा है । यह सुनकर वामन जी ने उत्तर दिया कि जो सम्पूर्ण ब्रह्मसृष्टि है वही हमारा निवास है । यह सुनकर राजा बलि ने सोचा कि जैसे सब लोग सृष्टि मेँ रहते है, वैसे ही यह ब्राह्मण भी रहता है । अनन्तर राजा बलि ने पूछा कि तुम्हारा नाथ कौन है । तब वामन जी ने उत्तर दिया कि हम सबके नाथ है तथा हमारा कोई नाथ नहीँ है । राजा बलि ने सोचा कि इसके माता पिता आदि रक्षक छोटेपन मेँ ही नष्ट हो गये है । तब बलि ने प्रश्न किया कि तुम्हारे पिता कौन है। वामन जी ने उत्तर दिया कि पिता का स्मरण नहीँ करते अर्थात हमारा कोई पिता नहीँ, हम ही सबके पिता है ।बलि ने सोचा कि यह कहता है कि छोटेपन से पिता न होने के कारण पिता का स्मरण नहीँ है ।

वामन जी भिक्षा मेँ  मांगी तीन पग जमीन

राजा बलि ने कहा कि तुम क्या चाहते हो । वामन जी ने उत्तर दिया भिक्षा मेँ तीन पग पृथ्वी । तब बलि ने कहा कि हे ब्राह्मण ! ये तो थोड़ी है । वामन जी ने उत्तर दिया कि इतने से हम तीनोँ लोकोँ की भावना करते है अर्थात हम तीन पग मेँ ही त्रिलोकी नाप लेँगे ।

राजा बलि ने समझा कि यह ब्राह्मण कहता है कि तीन पग भूमि ही हमको तीनोँ लोक है, यह बड़ा संतोषी ब्राह्मण है । राजा बलि दैत्यगुरू शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अड़िग रहते हुए प्रभु को तीन पग भूमि लेने को कहता है । वामन जी एक पग मेँ सभी लोक तथा दूसरे पग मेँ पूरी पृथ्वी को नाप लेते है । अब तीसरा पग रखने का कोई स्थान नहीँ रह जाता । बलि के सामने संकट उत्पन्न हो जाता है कि यदि अपना वचन नहीँ निभाया तो अधर्म होगा । इसलिये बलि अपना सिर आगे कर देता है और कहता कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिये । भगवान ठीक वैसा ही करते है तथा बलि को सुतल लोक मेँ रहने का आदेश करते है । राजा बलि सहर्ष भगवान की आज्ञा को शिरोधार्य करता है ।

राजा बलि द्वारा वचन पालन से प्रसन्न होकर प्रभु बलि को वर माँगने को कहते है । इस पर राजा बलि दिन-रात भगवान को अपने पास सुतल लोक मेँ रहने का वर माँगता है तथा भगवान विष्णु अपना वचन पालन करते हुए राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते है । जिन्हे फिर बाद मेँ रक्षा बंधन की पौराणिक कथा अनुसार देवी लक्ष्मी राजा बलि से वर माँग कर मुक्त करवा लेती है ।

पूजन विधि

इस दिन प्रात:काल भक्तों को श्रीहरि का स्मरण करने नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करना चाहिए। भगवान वामन को पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है। संध्या के समय व्रती को भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं ।

Other Similar Posts

जलझूलनी एकादशी का महत्व कथा और व्रत विधि

विष्णु के सुदर्शन चक्र की कहानी


एकादशी का महत्व हिन्दू धर्म में


Post a Comment

Previous Post Next Post