सफला एकादशी व्रत महत्व कथा नियम और पुण्य प्राप्ति
Safala Ekadashi Vrat 2024 . हमारे सनातन धर्म में विष्णु भक्ति के लिए एकादशी का अत्यंत महत्व है | सफला एकादशी मनोरथो को सफल करने वाली एकादशी बताई गयी है जो पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है | कहते है जो व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना नियम पूर्वक करता है और रात्रि में जागरण करके भगवान विष्णु की महिमा का गाण करता है उसकी इच्छाओ को श्री हरि नारायण पूर्ण करते है और उसका विपरीत समय भी उसके पक्ष में आ जाता है |
एकादशी कब है सफला एकादशी व्रत
इस साल सफला एकादशी का व्रत 7 जनवरी 2024 को पड़ रही है . यह पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी है .
एकादशी शुरू | 7 जनवरी |
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एकादशी समापन | 8 जनवरी |
सफला एकादशी व्रत के महात्म्य
पद्म पुराण में सफला एकादशी के महात्म के बारे में बताया गया है जिसमे बताया गया है | श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी पर जो भक्त भगवान नारायण के लिए अपने दिन रात को समर्प्रित कर विधि विधान से पूजा अर्चना करता है और फिर रात्रि में जाग कर उनकी लीलाओ की कथा का पाठ करता है , उसे भविष्य में सफलता प्राप्त होती है | वह अपने दुखो से ऊपर उठकर परम शांति को प्राप्त करता है और अपना जीवन उन्नति के साथ व्यतीत करता है |
सफला एकादशी की कथा
पद्म पुराण में आई कथा के अनुसार एक बार एक राज्य में महिष्मान नाम का एक राजा था। इनका बड़ा पुत्र लुम्पक गलत कर्मो में लगा हुआ था | इससे उसके पिता बहुत नाराज थे | अपने बेटे की अक्षम्य गलतियों के कारण उन्होंने उसे अपने राज्य से बाहर कर दिया | बेघर होने के कारण राजकुमार जंगल में रहने लगा |
पौष कृष्ण दशमी की रात में ठंड के कारण वह सो न सका और भगवान का ध्यान करते करते अपनी गलतियों की क्षमा याचना मांगने लगा | । सुबह जब ठण्ड अपने उच्चतम स्तर पर थी , तब उसके प्रभाव से लुम्पक बेहोश हो गया और संध्या को उठा | अब अँधेरा गहरा हो चूका था अत: एकादशी की रात को भी उसे भूखा रहना पड़ा | भूखे पेट उसे रात भर नींद नही आई | इस रात को भी वह नारायण का ध्यान करके अपने बुरे कर्मो को कोस रहा था | ना चाहते हुए भी उससे सफला एकादशी का व्रत हो गया | इस व्रत को पूर्ण करने से उसके बुरे ग्रह नक्षत्र सही दिशा में आ गये | पिता ने फिर से अपने पुत्र को अपने राज्य बुला लिया |
फिर पिता ने अपना सारा राज्य लुम्पक को सौंप दिया और खुद तपस्या के लिए चले गए। काफी समय तक धर्म पूर्वक शासन करने के बाद लुम्पक भी तपस्या करने चला गया और मृत्यु के पश्चात विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ।
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