श्रीसूक्त का पाठ करता है गरीबी दूर , हर शुक्रवार ऐसे करे पाठ

Shri Sukt Paath Se Garibi Hogi Duri , Jane Paath Vidhi

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार , धन प्राप्ति के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान बताया गया है | वैभव और समृधि की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने कई स्तुतिया और मंत्र बताये गये है । इसमे से एक है श्रीसूक्त। इसमे श्रीसूक्त में सोलह मंत्र हैं। यदि इन मंत्रो का जप पूर्ण श्रद्धा से किया जाये तो लक्ष्मी धन के मार्ग खोल देती है | 

देवी लक्ष्मी जी के 18 पुत्रो के नाम लेने से खुश होती है लक्ष्मी

shri sukt paath


श्री का अर्थ है लक्ष्मी और सूक्त का अर्थ है दोहावली जो संस्कृत में लिखी हो . 

आइये जाने इस पाठ से जुड़े कुछ नियम ….

माँ लक्ष्मी के धन प्राप्ति के चमत्कारी मंत्र 

कैसे करे श्रीसूक्त का पाठ 

वैसे तो श्रीसूक्त का पाठ रोज करना चाहिए, लेकिन अगर समय न हो तो हर शुक्रवार को भी श्रीसूक्त का पाठ कर सकते हैं। श्रीसूक्त का पाठ कैसे करें, जानिए…

1.लक्ष्मी जी का प्रिय वार शुक्रवार को बताया गया है अत: इस श्रीसूक्त का पाठ आप इस वार से शुरू कर सकते है | यदि शुक्रवार से पाठ शुरू नही कर पाए तो फिर आप अमावस्या और पूर्णिमा से यह शुरू कर सकते है |

2. माँ लक्ष्मी जी की फोटो या मूर्ति को एक चौकी पर लाल रेशमी कपडे को बिछा कर रखे | इन्हे लाल पुष्पों की माला पहनाये और । केसर मिली हुई  खीर का भोग भी लगाएं। हो सके तो प्याली चांदी की रखे .  पूजा में पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन विधि से पूजा करे |

shri lakshmi ji


3. अब श्रीसूक्त का पाठ करें। पाठ समाप्ति पर माता लक्ष्मी की आरती उतारें।

4. आप चाहे तो संस्कृत या हिंदी में श्रीसूक्त का पाठ कर सकते है | महालक्ष्मी व्रत , दीपावली पर यह पाठ करना अत्यंत शुभ बताया गया है |

5. जैसे जैसे आपके पाठो की संख्या बढती जायेगी , आप पर लक्ष्मी की कृपा ऐसी आएगी की धन प्राप्ति के नए नए मार्ग खुलने लगेंगे . 

श्रीसूक्त का पाठ हिंदी लिरिक्स 


ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजां |

चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 1 ||


ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहं || 2 ||


ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम |

श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषतां || 3 ||


ॐ कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं |

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियं || 4 ||


ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम |

तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वं वृणे || 5 ||


ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः |

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः || 6 ||


ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह |

प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में || 7 ||


ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठांलक्ष्मीं नाशयाम्यहं |

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात || 8 ||


ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिषिणीम |

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं || 9 ||


ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः || 10 ||


ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम |

श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीं || 11 ||


ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे |

नि च देविं मातरं श्रियं वासय मे कुले || 12 ||


ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीं |

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 13 ||


ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीं |

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 14 ||


ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विन्देयं पुरुषानहं || 15 ||


ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहयादाज्यमन्वहं |

सूक्तं पञ्चदशचँ च श्रीकामः सततं जपेत || 16 ||


|| श्रीसूक्त सम्पूर्णं ||

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