नरसी भगत की कथा - जीवनी और उनसे जुड़ी रोचक बातें

वैष्णव जन तो तेने कहिये , पीर पराई जाने रे ,  नरसी मेहता जी सांवरिया सेठ के बहुत बड़े भक्त थे , वे अपना सब कुछ साधू संतो में दान कर चुके थे . उनकी प्रबल मान्यता थी की ठाकुर जी उनके जीवन का ध्यान रखेंगे और जरुरी जरुरतो को पूरी करेंगे . वे तो बस पुरे दिन कृष्ण के प्रेम में डूबे रहते और भक्ति भजन किया करते थे . 

नरसी जी ने पुरे संसार को यह दिखाया कि जब हम अपना सब कुछ त्याग कर सांवरियां पर भी अपना विश्वास रखते है तो हमारी नैया को वो ही उभारते है . वे ही हमारे पालनहार बन जाते है . हमारे पर आई विपदा को वो भी तारते है 

koun hai narsi ji bhakt , jane kahani


यहा हम इस आर्टिकल में नरसी भक्त और उनसे जुड़ी चमत्कारी कहानियो के बारे में बताएँगे , इनकी जीवनी और कृष्ण भक्ति को जानेंगे . 

नरसी जी का जन्म और बचपन  

नरसी मेहता का जन्म गुजरात के भावनगर में तलाजा" नामक गाँव में हुआ था . बाल्यकाल इनका बहुत कठिन रहा और एक कथा के अनुसार ये आठ वर्ष तक बोल भी नही पाए थे . फिर एक संत के प्रभाव और आशीर्वाद से उन्हें वाणी मिली . जीवन आगे बढ़ा पर भक्ति वाले मार्ग पर है . 

भाई भाभी के साथ रहें वाले नरसी जी जब भक्ति में डूबे रहते और घर के कोई काम नही करते तो उन्हें भाभी हमेशा ऊँचा निचा बोला करती थी . पर नरसी जी को इससे कोई प्रभाव नही पड़ता था . 

narsi bhakt ki kahani hindi me


चैतन्य महाप्रभु की जीवनी और रोचक बातें

नरसी मेहता का विवाह

नरसी जी के जीवन को सही दिशा देने के लिए उनके भाई ने उनका विवाह एक मानेकबाई से करा दी , जिससे की वे गृहस्थ में ध्यान दे और काम धंधा करे . पर विवाह के बाद भी नरसी जी पहले जैसे ही रहे . 

विवाह के बाद उन्हें दो संतान की प्राप्ति हुई जिनके नाम कुँवर बाई तथा शामलदास रखा . 

भाभी के ताने से हुए कृष्ण रास के दर्शन

एक बार भाभी ने नरसी जी को बहुत भला बुरा बोला और इस बार वे बातें नरसी जी को चूब गयी . वे जंगल में जाकर 7 एक शिव मंदिर  में बस गये और बिना खाना पीना किये शिव जी की आराधना करने लगे . 

शिव चमत्कार से उन्हें एक संत मिले जो उन्हें वृन्दावन में रास लीला दिखाने को ले गये . वहाँ कृष्ण और राधे संग गोपियों का रास उन्हें इतना अच्छा लगा कि वे सुध बुध भूल कर अपना हाथ ही जला बैठे . 

तब स्वयं कृष्ण ने अपने चमत्कार से उनके हाथो का स्पर्श कर उनके जले हाथ को सही किया . 

घर आकर उन्होंने इस प्रसंग के लिए अपनी भाभी के मारे हुए ताने का धन्यवाद किया . 

कृष्ण ने धारण किया नरसी जी का रूप 

नरसी जी के पिता जी श्राद्ध का दिन था और उनके घर में साधू संतो को भोजन कराना था . घर में घी कम था अत: नरसी जी की पत्नी ने उन्हें बाजार घी लेने भेजा . नरसी जी जब बाजार जा रहे थे तब उन्हें हरि कीर्तन करने वाले साधुओ की टोली दिखाई दी . नरसी जी भी उस टोली में चले गये और हरि कीर्तन में झूमकर गाने नाचने लगे . वे भूल गये थे कि उन्हें घी लेकर घर जाना है .

कृष्ण अपने भोले और मतवाले भक्त को जानते थे अत: नरसी जी का रूप धारण करके घी लेकर घर आ गये और पत्नी को घी देकर साधू संतो को भोजन करवाया .

शाम को नरसी जी को होश आया कि वो तो घर से घी लेने निकले थे , वे घबरा गये कि आज इनकी पत्नी और साधू संत सब उनसे नाराज हो जायेंगे . वे घबराये हुए घर पहुंचे पर वहा उन्हें सब सामान्य लगा .

उन्हें पता चला कि उनके रूप में ही कोई घर आकर घी दे गया है ,

वे जानते थे कि यह लीला श्री कृष्ण ने ही रची है और उनके नयन कृष्ण प्रेम में भर आते है .

नानी बाई का मायरा , कृष्ण बन कर आये भाई 

नरसी जी की एक बेटी थी जिसका नाम नानी बाई था . नानी बाई की बेटी की शादी होने वाली थी और इसलिए नानी बाई के ससुराल वाले एक बहुत बड़ी लिस्ट मायरे की नरसी जी के पास भिजवाते है . 

वे अच्छे से जानते है कि फखढ़ नरसी जी के पास देने को कुछ नही है पर वे बस उन्हें बेटी के ससुराल में जलील करना चाहते है . 

नरसी जी मायरे की चिट्टी को सांवरिया के चरणों में रख देते है और मुस्कुराये के कहते है कि यह इस मायरे की लाज तुम्हे ही रखनी है . 

वे अपने साथ रहने वाले 10 सुरदासो के साथ एक बूढ़े बैलो की बेलगाडी पर सवार होकर रवाना हो जाते है . रास्ते में बैलगाड़ी का पहिया टूट जाता है और फिर नरसी जी अपने कृष्ण पर गुस्सा हो जाते है और गुस्से में ताने वाला भजन गाते है . 

भजन समाप्त होने पर कृष्ण और रुकमनी प्रकट होते है और रूठे हुए नरसी जी को मनाते है . 

मायरे के एक दिन पहले वे बेटी के घर के पास पहुँचते है , और ससुराल वाले उन्हें एक खंडर में ठहरा देते है . 

रात को फिर चमत्कार होता है और सुबह सभी सूरदासो की आँखों की रौशनी आ जाती है . 

मायरे वाली जगह जब सभी रवाना होते है तो रास्ते में सांवरिया सेठ और रुक्मणि 56 करोड़ का मायरा लेकर नरसी जी के साथ हो जाते है . 

नानी के ससुराल में ऐसा मायरा देखकर सब नरसी जी भक्ति और कृष्ण की महिमा को जान जाते है और बहुत ही शर्मिंदा होते है . 

इस तरह कृष्ण अपने भक्त की लाज बचाने के लिए स्वयम भाई बनकर नानी बाई का मायरा भरते है . 

 


Post a Comment

Previous Post Next Post