भैरव के जन्म की कथा और ब्रह्मा का एक सिर काटना

Bhairav Birth Story in Hindi भैरव शिव के पांचवे रूद्र अवतार है | इनका अवतरण मार्गशीर्ष मास की कृष्णपक्ष अष्टमी को एक दिव्य ज्योतिर्लिंग से हुआ है | इस दिन को भैरव जन्म जयंती कालाष्टमी के नाम से जाना जाता है . 

भैरव के जन्म की कहानी क्या है


भैरव के अवतरण की कथा - कैसे हुआ भैरव जी का जन्म 

पुराण कथा के अनुसार एक बार साधुओ ने सभी त्रिदेव और देवताओं से पूछा की आपमें सबसे महान और सबसे श्रेष्ठ कौन है | देवताओं ने सभी वेदों से पूछा तो सभी ने एक सुर में कहा की महादेव शिव के समान कोई नहीं है वे ही सर्व शक्तिशाली और पूजनीय है |

वेद शास्त्रों से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्मा ने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। उस शीश ने इतना तक कह दिया की जो भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म लगाते है , नग्न रहते है और जिनके पास ना ही महल है ना ही धन वैभव वो कैसे श्रेष्ठ हो सकते है | यह सुनकर सभी वेदों और देवी देवताओ को बहुत दुःख हुआ | इसी समय एक दिव्यज्योति शिवलिंग से एक बालक उत्पन्न हुए। वह बालक जोर जोर से रुद्रं करने लगा | ब्रह्मा को अज्ञानवस लगा की उनके तेज से ही यह बालक उत्पन्न हुआ है |

bhairav sir katna brahma ji ka


अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र’ रखा है और तुम मेरे द्वारा जन्मे हो अत: तुम भरण पोषण करने वाले होगे अत: तुम्हे भैरव के नाम से भी जाना जायेगा ।

भैरव को ब्रह्मा जी  ने वरदान प्रदान कर दिए थे पर उनके पांचवे शीश से शिव के लिए गलत शब्द निकलना बंद नही हो रहे थे | सहन शक्ति ख़त्म होने पर भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाख़ून से वाले ब्रह्मा के पांचवे सर को काट दिया |
यह करना बह्र्म हत्या के समान था | शिव ने उन्हें आदेश दिया की तुम जब तक इस पाप से मुक्त ना हो जाओ तब तक त्रिलोक में भ्रमण ही करते रहो और तब तक किसी भी स्थान पर स्थाई और शांति से मत बैठो | भैरव ने शिव आदेशानुसार वैसा ही किया तब अंत में काशी जगह पर उन्हें हाथ से ब्रह्मा  का शीश स्वतः ही छुट गया और तब वे इस पाप से मुक्त हो पाए | 


शिवजी ने उन्हें काशी का कोतवाल बना दिया |

आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ बाबा के दर्शन पूर्ण नही माने जाते , इसी तरह उज्जैन के काल भैरव के दर्शन के बिना महाकाल के दर्शन का पूर्ण लाभ नही मिल पाता ।

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