विष्णु लक्ष्मी की तपोस्थली – बद्रीनाथ धाम कथा

बद्रीनारायण धाम का महत्व और  विशेषता :

द्रीनाथ धाम को बद्रीनारायण बद्री विशाल आदि नामो से पहचाना जाता है | यह हिन्दुओ के मुख्यत चार धामों में से एक है जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्प्रित है | विष्णु भगवान के परम धामों में से एक बद्रीनाथ तीर्थ के दर्शन करना हर धार्मिक व्यक्ति का स्वपन होता है | केदारनाथ के करीब होने से इस तीर्थस्थल के दर्शन करना कल्याणकारी माना जाता है | यहाँ अखंड ज्योति दीपक जलता रहता है और नर नारायण की भी पूजा होती है | साथ ही गंगा की 12 धाराओ में से एक धार अलकनन्दा के दर्शन का भी फल मिलता है |

बद्रीनाथ धाम की कथा कहानी


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 चार धाम यात्रा का मुख्य धाम 

उत्तराखंड में हिन्दुओ के चार मुख्य धाम है जिसमे से दो धाम नदियों के उद्गम स्थल है जिसे हम गंगोत्री और यमुनोत्री के नाम से जानते है . गंगोत्री से माँ गंगा नदी का प्रवाह शुरू होता है तो यमुनोत्री से माँ यमुना का .   इसके बाद विष्णु जी का बद्रीनाथ और शिव शंकर का केदारनाथ धाम स्तिथ है .

ये चारो ही प्रकृति की अति सुन्दरता के नजारे है . यहा जाना और दर्शन करना हर हिन्दू धर्मी का स्वपन होता है . 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बद्रीनाथ धाम की कथा :

एक बार श्री हरि (विष्णु) के मन में एक घोर तपस्या करने की इच्छा जाग्रत हुई | वे उचित जगह की तलाश में इधर उधर भटकने लगे | खोजते खोजते उन्हें एक जगह तप के लिए सबसे अच्छी लगी जो केदार भूमि के समीप नीलकंठ पर्वत के करीब थी | यह जगह उन्हें शांत , अनुकूल और अति प्रिय लगी | वे जानते थे की यह जगह शिव स्थली है अत: उनकी आज्ञा ली जाये और यह आज्ञा एक रोता हुआ बालक ले तो भोलेबाबा तनिक भी माना नहीं कर सकते है | उन्होंने बालक के रूप में इस धरा पर अवतरण लिए और रोने लगे |

उनकी यह दशा माँ पार्वती से देखी नही गयी और वे शिवजी के साथ उस बालक के समक्ष उपस्थित होकर उनके रोने का कारण पूछने लगे |

बालक विष्णु ने बताया की उन्हें तप कारण है और इसलिए उन्हें यह जगह चाहिए |

भगवान शिव और पार्वती ने उन्हें वो जगह दे दी और बालक घोर तपस्या में लीन हो गया |

तपस्या करते करते कई साल बीतने लगे और भारी हिमपात होने से बालक विष्णु बर्फ से पूरी तरह ढक चुके थे , पर उन्हें इस बात का कुछ भी पता नहीं था |

बद्रीनाथ मंदिर


बैकुंठ धाम से माँ लक्ष्मी से अपने पति की यह हालत देखी नही जा रही थी | उनका मन पीड़ा से दर्वित हो गया था | अपने पति की मुश्किलो को कम करने के लिए वे स्वयं उनके करीब आकर एक बेर (बद्री) का पेड़ बनकर उनकी हिमपात से सहायता करने लगी |

फिर कई वर्ष गुजर गये अब तो बद्री का वो पेड़ भी हिमपात से पूरा सफ़ेद हो चूका था |

कई वर्षों बाद जब भगवान् विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तब खुद के साथ उस पेड़ को भी बर्फ से ढका पाया | क्षण भर में वो समझ गये की माँ लक्ष्मी ने उनकी सहायता हेतू यह तप उनके साथ किया है |

भगवान विष्णु ने लक्ष्मी से कहा की “हे देवी , मेरे साथ तुमने भी यह घोर तप इस जगह किया है अत इस जगह मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी | तुमने बद्री का पेड़ बनकर मेरी रक्षा की है अत: यह धाम बद्रीनाथ कहलायेगा ”

बद्रीनाथ में  भगवान विष्णु की मूर्ति दर्शन  :

भगवान विष्णु की इस मंदिर में मूर्ति शालिग्राम  से बनी हुई है जिसके चार भुजाये है | कहते है की देवताओ ने इसे नारदकुंड से निकालकर स्थापित किया था |

बद्रीनाथ जी दर्शन मूर्ति के

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नारदकुंड की महिमा 

कहते है इस स्थान पर नारद जी ने सिर्फ वायु का आहार करके 30 हजार सालो की घोर तपस्या की थी . इस तपस्या के प्रभाव से उन्हें देवर्षि नारद का पद प्राप्त हुआ था .

स्कंदपुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति इसके दर्शन और इसके पानी से आचमन कर ले वो जन्म जनम के बंधन से मुक्त होकर वैकुण्ठ को प्राप्त हो जाता है . 

नारद कुंड बर्द्रीनाथ धाम


द्वापर युग के अंत में ब्रह्मा जी ने स्वयं के हाथ से विष्णु जी का चतुर्भुज विग्रह इस कुंड से निकालकर मंदिर में स्थापित किया था . 

इसके बाद अधर्मी और कुंठित लोगो के कारण इस विष्णु की मूर्ति को फिर से नारद कुण्ड में रखा गया और बाद में आदि शंकराचार्य जी ने इसे फिर से मंदिर में स्थापित करवाया . 

सारांश 

  1. तो दोस्तों आपने इस आर्टिकल में जाना उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम की कथा कहानी के बारे में  यहा हमने आपको विस्तार से बद्रीविशाल धाम की हिंदी जानकारी दी है . आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी . 

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