शरद पूर्णिमा पर खीर बनती है अमृत

Importance Of Kheer On Sharad Poornima शरद पूर्णिमा अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह रात चन्द्रमा की 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत वर्षा करती है । इसलिए इस रात को खीर बनाकर और जाली से ढककर खुले आसमान के तले रखा जाता है।

शरद पूर्णिमा पर खीर का महत्व

मान्यता है की चन्द्र देव की चांदनी से इस रात खीर में कई औषधीय गुण आ जाते है | यह स्वास्थ्य के लिए अमृत रूपी होती है | यही कारण है की शरद पूर्णिमा को खीर बनाकर चांदनी में रखने का बहुत महत्व है | आप शाम 8 बजे से रात्रि 1 बजे तक खीर को छत पर रखे और सुबह पुरे परिवार के साथ यह भोग प्रसाद ले |

विशेष नोट :-  यहा आपको एक बात का विशेष ध्यान रखना है कि खीर को आप छत पर ऐसे रखे कि कोई बिल्ली या कोई दूसरा जानवर उसे चक ना सके . खीर से भरे पात्र को आप चलनी या फिर सूती कपडे से ढख दे , नही तो खीर खाने लायक नही बचेगी . साथ में यह ध्यान रखे कि शरद पूर्णिमा के चंद्रमा की किरणे उस पर गिरती रहे .

माँ लक्ष्मी के स्वागत का दिन

शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती पर आती हैं। वे अपने सच्चे और अच्छे भक्तो की तलाश करती है | माता लक्ष्मी यह देखती हैं कि कौन रात को जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को ‘कोजागरा’ भी कहा जाता है। ‘कोजागरा’ का मतलब होता है कि कौन जाग रहा है।

शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि शरद पूर्णिमा की रात में जागकर जो भी माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करता है उस पर माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। मान्यता है कि माता लक्ष्मी को खीर बहुत प्रिय है। इसलिए पूर्णिमा को माता को खीर का भोग लगाने से धन प्राप्ति के प्रबल योग बनते हैं।

इस रात्रि के साथ एक और मान्यता है की भगवान श्री कृष्ण ने अपनी गोपियों के साथ महारास रचा था | आज भी वे वृंदावन के निधिवन में रास रचाते है |

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