क्यों घट रहा है गोवर्धन पर्वत का आकार
आज हम आपको बताने वाले है की गोवर्धन पर्वत जिन्हें हम गिरिराज जी महाराज भी कहते है , अपने पूर्व जन्म में क्या थे | क्यों आज यह भगवान कृष्ण की तरह ब्रज में पूजे जाते है | गोवर्धन पर्वत की महिमा और महत्व क्या है , क्यों इन्हे भगवान की तरह पूजा जाता है . आज जानते है गोवर्धन पर्वत उत्पति की सम्पूर्ण कथा और साथ ही जानेंगे कि देव तुल्य पर्वत का आकार आखिर क्यों हर दिन घट रहा है . किस श्राप के कारण गोवर्धन नष्ट होने की कगार पर है .
गोवर्धन जन्म की कथा
राधा जी के अनुग्रह पर श्री कृष्ण ने गोवर्धन का जन्म शाल्मली द्रीप के भीतर द्रोणाचल की पत्नी के गर्भ में जन्म लिया | यह पर्वत बाकि सभी पर्वतो में सबसे पूजनीय रहा | वही द्रोणाचल पर्वत जिस पर संजीवन बूटी थी और हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए उसे एक ही रात में हिमालय से लंका ले आये थे .
पुलस्त्यजी का आना और गोवर्धन को मांगना
एक बार ब्रह्मा के पुत्र मुनि पुलस्त्यजी शिव की नगरी काशी से द्रोणाचल के आश्रम आये और उनके पुत्र के संस्कारो को देखा | सभी ओषधी गुणों से युक्त और महिमापूर्ण पर्वत को देखकर उन्होंने इच्छा जाहिर की वे उसे अपने साथ ले जाना चाहते है |
यह बात सुनकर द्रोणाचल के नयनो से पानी आ गया | वे समझ गये की यदि उन्होंने मुनि को मना किया तो वे क्रोध में श्राप दे देंगे और यदि उनकी बात मान ली गयी तो पुत्र वियोग देखना पड़ेगा | वे धर्म संकट में फंस गये थे | फिर भारी मन से उन्होंने अपने पुत्र से कहा की , बेटा तुम पुलस्त्यजी के साथ चले जाओ |
गोवर्धन जी तैयार हो गये पर उन्होंने मुनि से कहा यदि आप मुझे कही रख देंगे तो फिर मैं वही स्थापित हो जाऊंगा | मुनि गोवर्धन की बात मान गये |
रास्ते में ब्रज की कृष्ण भूमि आ गयी | उस नगरी की महिमा गोवर्धन जी जानते है और उनका मन यही स्थापित होना चाहता था | उन्होंने अपना भार बढ़ा लिया और पुलस्त्यजी उठा नही पाए और उन्हें इसे ब्रज की धरती पर रखना पड़ा | शर्त के अनुसार गोवर्धन की यही स्थापना हो चुकी थी |
पुलस्त्यजी ने फिर दिया गोवर्धन को श्राप
पुलस्त्यजी गोवर्धन की चाल को समझ चुके थे | उन्हें इससे बहुत आघात पहुंचा | उन्होंने फिर क्रोध में गोवर्धन को श्राप दे दिया की , " तुम अब से हर दिन तिल तिल कम होते जाओगे " | इस तरह आज जो हम गोवर्धन देख रहे है वो उन्ही मुनि के श्राप के कारण बिलकुल कम हुआ पड़ा है | इसी कारण गोवर्धन को श्रापित कहा गया है |
गोवर्धन की पहले ऊंचाई
कहते है कि आज से 5000 साल पहले गोवर्धन पर्वत 30 किमी ऊँचा था . अब यह ना के के बराबर है और बस कही कही कुछ मीटर का ही दिखाई देता है . गोवर्धन का आकार हर दिन तिल तिल घट रहा है . यह सब एक श्राप के साथ जुड़ा हुआ है .
हनुमान जी का भी है गोवर्धन से सम्बन्ध
कहते है जब रामसेतु निर्माण का कार्य चल रहा था तब हनुमान जी उत्तराखंड से इस पर्वत को उठाकर ला रहे थे जिससे कि इसके पत्थर सेतू निर्माण में काम आ सके , जब हनुमान इस पर्वत को उठा कर ला रहे थे तब उन्हें पता चला कि सेतु बंधन कर कार्य पूर्ण हो चूका है और अब पत्थरो की जरुरत नही है .
अत: हनुमान जी ने गोवर्धन को ब्रज भूमि में ही छोड़ दिया .
इससे गोवर्धन पर्वत बहुत दुखी हुआ क्योकि वो श्री राम के सेतु बंधन में काम में ना सका . तब आकाशवाणी हुई कि अगले युग में फिर से विष्णु अवतार कृष्ण के रूप में यही मथुरा में जन्म लेंगे और तुम्हे धारण करेंगे .
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