सनातन हिन्दू धर्म देवी देवताओ के यंत्र 

Sanatan Dharma Worship Through Yantra सबसे पहले तो जाने की यंत्र होता क्या है और किसी देवी देवता की पूजा में यह क्या भूमिका अदा करता है | यंत्र को English में Machine भी कहते है |

sanatan dharm me yantra kounse hai


यह साधक की उर्जा द्वारा जाग्रत होती है और ईश्वर की शक्ति से उसके कार्यो को पूर्ण करती है | यन्त्र और मंत्र यह आपस में जुड़े हुए है | किसी भी मंत्र जप सही विधि से करने पर आपने उस देवी देवता का यंत्र भी साथ लगा रखा है तो शत प्रतिशत आपकी पूजा सफल होती है |

कैसे बनाया जाता है यंत्र 

यह उचित नक्षत्र और तिथि में भोजपत्र , ताम्बे , सोने , चांदी या कागज पर बनाया जाता है | इसमे बहुत शक्ति होती है | यह संख्या से , आकृति से और रेखाओ से अलग अलग प्रकार के बनाये जाते है | सभी नवग्रह , देवी देवताओ के अलग अलग यन्त्र होते है जिसमे बीज मंत्रो का भी प्रयोग किया जाता है |

यन्त्र निर्माण के बाद इसे आप सूर्य ग्रहण , चन्द्र ग्रहण , होली और दिवाली जैसे दिनों पर सिद्ध कर सकते है |

यंत्र साधना

हिन्दू धर्म में प्रबल मान्यता है की जो व्यक्ति सही विधि से यन्त्र साधना करता है उसे कार्य की सिद्धि जरुर प्राप्त होती है | इस साधना में बस इस यन्त्र को सिद्ध करके घर के मंदिर में रखना होता है और सभी परिवार के सदस्यों को इसका लाभ प्राप्त होता है | यंत्रो में संख्या या मंत्र विधि विधान से लिखे जाते है |

हिन्दू धर्म में मुख्य यंत्र :

  • नवग्रहों की शांति के लिए – सम्पूर्ण नवग्रह यंत्र |
  • मंगल ग्रह के दोषपूर्ण प्रभावों को हटाने के लिए : मंगल यंत्र |
  • अपार धन सम्पदा की प्राप्ति के लिए कुबेर यंत्र और  लक्ष्मी जी का श्रीं यंत्र |
  • रक्षा और कवच के लिए : दुर्गा बीसा यंत्र |
  • पितृ शांति के लिए पितृ दोष निवारण यंत्र |
  • जिस दम्पति के संतान सुख नही हो रहा उनके लिए संतान गोपाल प्राप्ति यंत्र |
  • घर या ऑफिस में वास्तुदोष को कम करने के लिए : सम्पूर्ण वास्तु दोष निवारण यंत्र 
  • कालसर्प दोष  : कालसर्प दोष निवारण यंत्र 
  • सारांश 

    1. सनातन धर्म में कुछ विशेष यंत्र है  जो अलग अलग हिन्दू धर्म के देवी देवताओ से जुड़े है . ऐसे यंत्रो को अपने घर या व्यापार की जगह स्थापित करके आप अच्छे भाग्य को पाते है और कैसे तरह के दोषों को दूर कर पाते है  . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी.

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