चिंतामण गणेश मंदिर उज्जैन

उज्जैन यानि अवंतिका नगरी के महाकालेश्वर मंदिर से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम जवास्या में भगवान गणेश का प्राचीनतम मंदिर चिंतामण गणेश (Chintaman Ganesh Temple ) के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का सम्बन्ध माता सीता से बताया जाता है जिन्होंने रामायण काल में यहा गणेश जी की मूर्ति की स्थापना की थी | तो आप सोच सकते है कि यह मंदिर और यह मूर्ति कितनी पुरानी होगी . 

चिंतामण गणेश मंदिर

तीन गणेश प्रतिमा तीन अलग नाम

चिंतामण गणेश मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते ही हमें प्रथम पूज्य देवता गणेश की तीन प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। इन तीनो के अलग अलग नाम और रूप है । पहले चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक।

क्यों पड़ा चिंतामण गणेश नाम ? 

चिंतामण गणेश जी भक्तो की चिंता दूर करते है , जबकि इच्छामन अपने भक्तों की समस्त इच्छाओ और कामनाओ की पूर्ति करते है जबकि अंतिम सिद्धिविनायक गणेश सभी सिद्धियों को देने वाले है| गर्भगृह के उपरी दीवार पर आपको संस्कृत में एक श्लोक लिखा हुआ दिखाई देगा जो है :-

चिंतामण गणेश मंदिर उज्जैन


कल्याणानां निधये विधये संकल्पस्य कर्मजातस्य।

निधिपतये गणपतये चिन्तामण्ये नमस्कुर्म:।

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चिंतामण मंदिर उज्जैन का इतिहास

इस मंदिर की स्थापना परमारों ने 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच की है | वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होलकर के समय में हुआ है ।

पौराणिक मान्यताओ के अनुसार राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र जी ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी। सतयुग में राम, लक्ष्मण और सीता मां वनवास पर थे तब वे घूमते-घूमते यहां पर आये तब सीता मां को बहुत प्यास लगी ।

चिंतामण गणेश मंदिर

लक्ष्मण जी ने अपने तीर इस स्थान पर मारा जिससे पृथ्वी में से पानी निकला और यहां एक बावडी बन गई। माता सीता ने इसी जल से अपना उपवास खोला था। तभी भगवान राम ने चिंतामण, लक्ष्मण ने इच्छामण एवं सिद्धिविनायक की पूजा अर्चना की थी।

मुख्य पर्व :

चिंतामण गणेश मंदिर में हर बुधवार को भक्तो की अपार भीड़ गणेश जी के तीनो रूपों के दर्शन के लिए आती है | चैत्र मास के प्रत्येक बुधवार को यहां मेला भी भरता है जिसमे दूर दूर से हजारों श्रद्धालु आते है | गणेश जी का श्रृंगार चांदी वक्र और सिंदूर से किया जाता है |

विशेष मान्यता

यहा के पुजारीजी के अनुसार किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए यहा एक धागा बांधा जाता है और उल्टा स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है | मन्नत के लिए दूध, दही, चावल और नारियल में से किसी एक वस्तु को चढ़ाया जाता है , यदि आपकी वो मन्नत पूर्ण हो जाती है तो उसी वस्तु का फिर दान किया जाता है |

इसके अलावा उज्जैन नगरी के नवविवाहित युगल , नव वाहन की पूजा के लिए भक्त मंदिर में आशीर्वाद लेने आते है 

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Conclusion (निष्कर्ष ) 

उज्जैन नगरी से कुछ किमी की दुरी पर अति प्राचीन मंदिर चिंतामण गणेश जी का स्तिथ है जो भक्तो की चिन्ताओ का निवारण करते है . कहते है यह मंदिर रामायण काल से जुड़ा हुआ है और माता सीता ने यहा गणेश जी की स्थापना की थी . 

आशा करता हूँ यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा . 

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